अहंकार से जीत
प्रेम से हार नहीं होती
हिमालय पर बैठकर
गंगा पार नहीं होती॥
जो निन्यानवे पर
आउट होने से डरते हैं
वो शतक कहाँ
पूरा करते हैं ॥
वो बनाना
कुछ और चाह रहा है
हम बन कुछ और रहे हैं
इसीलिए भटक रहे हैं ॥
उन्होंने क़ैद किया
लगा मनसूबे बिखर गये
कौन बताये उनको कि
जेलों में
शायर निखर गये ॥
वो हमारे वतन आए
हम उनके वतन गये
इंसान ने इंसान से
मुलाक़ात की
राजनीतिक महकमे
क्यूँ हिल गये ॥
अपने देश की माटी
दूसरे देश क्या ले गया
तुमनें उसे
देशद्रोही कह दिया ॥
कब्र क्यूँ खोद रहे हो
यहाँ हर
ज़िन्दा इंसान
अपनें घरों में
दफ़्न है ॥
ज़रा सी नज़रें
उठाके क्या देख लिया
तुम्हारा ग़ुरूर
काँच का था क्या
जो चकनाचूर हो गया ॥
कैसे पत्थर
दिल हो गये
चोट उसे लगी
चेहरे तुम्हारे
खिल गये ॥
लफ़्ज़ों के बीच
मुझे पढ़ना आ गया
मुझे इंसान को
समझना आ गया ॥
ग़रीबी की
ऐसी मार थी
एक हाथ में सूखी रोटी
दूसरे में तलवार थी॥
हर बड़ी चीज़
अच्छी नहीं होती
जहाँ सुई काम आ जाये
वहाँ तलवार अच्छी नहीं होती ॥
तेरा एहसान
ऐसे चुकाऊँगा
मरकर तेरे
पास आ जाऊँगा॥
सच बोलने का
ईनाम मिला
बस तू मिला
और कुछ ना मिला ॥
कर पा रहा हूँ सब कुछ
क्यूँकि तू मेरे साथ है
वर्ना तो पलक उठाने की भी
कहाँ मेरी औक़ात है ॥
करके दिखाओ कुछ ऐसा
दुनिया तरसे करने को वैसा ॥
दिलवालों और दौलतवालों की
जंग अभी जारी है
दौलत के तराज़ू पर
दिल का पलड़ा अभी भारी है ॥
तू ही तेरी हस्ती है
तू ही तेरी बस्ती है
लुटेरों के इस जहाँ में
हमनें भी कमर कस ली है॥
रास्ता बनाने के लिये
हमनें जिनको वोट दिया
आज उन्हीं की रैली ने
हमारा रास्ता रोक दिया ॥
वो इस क़दर
झूठ बोलता है
उसको ख़ुद को नहीं मालूम
कि वो झूठ बोलता है ॥
ग़ज़ब की इंसानियत है तुम्हारी
ज़िन्दा थे तो
पानी को भी नहीं पूछा
मरते ही
जगह जगह प्याऊ खुलवा दिये ॥
हम ऐसी बस्ती में
रहते हैं
साँपों की ज़रूरत
नहीं यहाँ
इंसाँ ही इंसाँ को
डँसते हैं ॥
ग़रीबों के सपने
अमीर कचड़े में
फेंका करते हैं
ग़रीब अपने सपनों को
कचड़े में
बीना करते हैं ॥
सुना है महलों में उनके
जाम छलकते थे
उनके मज़दूर
आब के एक क़तरे को तरसते थे॥ [आब = पानी]
इतनी सी ख़ता कर बैठे
उनको जवाब दे बैठे
चुप रहते तो
दिल में उतर जाते ॥
ज़िन्दगी कट रही है
दो पाटो में
एक फूल खिल रहा है
हज़ार काँटों में ॥
उसको पता था
इंसान दिखायेगा अपना रंग
इसलिये हवा और पानी को
कर दिया बेरंग॥
वक़्त का फ़लसफ़ा
ही कुछ ऐसा है
गुज़ारने से
गुज़रता नहीं
ना गुज़ारो तो
रूकता नहीं॥
ताबीज़ अँगूठी धागे
सब फेंक दिये आज
इनकी क्या ज़रूरत
जब तू है साथ॥
तेरे हर हुक्म से
तालीम ली है मैंने
जो सज़ा थी
अब आदत बना ली है मैंने॥
हाथों की लकीरों को
तक़दीर बना लिया
ठोकर लगी जब
इन्हीं लकीरों को मिटा दिया॥
मैंने आग में चलना शुरू कर दिया
वो बोले जल जाओगे
मैंने कहा जो आग में चले हैं
उनका इल्म तो हासिल हो !
महफ़िल पूरे शबाब पे थी
काफ़ी नामी गिरामी लोग शुमार थे
अचानक एक शख़्स आया
सच बोलने लगा
कहते हैं महफ़िल में अब
उसका कोई दोस्त ना बचा !
पता है मुझे क्या होगा
अग़र सच बोलता रहूँगा
सबको खो दूँगा
तुझको पा लूँगा॥
बस यही बदहवासी
हर बार करता हूँ
तुम चाँद पर
जाने की बात करते हो
मैं चाँद ज़मीं पर
लाने की बात करता हूँ॥
उम्र छोटी है लेकिन
तजुर्बे बहुत हैं
जीने के लिये आबे हयात की
एक बूँद बहुत है
ना बंद कर मुझे पिंजरे में
ऐ सय्याद
पंख छोटे हैं लेकिन
उड़ने के लिये अभी
आसमां बहुत है॥
[आबे हयात=अमृत, सय्याद= शिकारी]
तुम आगे बढ़ो
कोई एक ही चाहेगा
तक़दीर अच्छी
तो घरवाला होगा
वर्ना कोई बाहर वाला
साथ निभायेगा॥
तू मुझे आज़मा रहा है
मतलब मुझपे यक़ीन रखता है
जहाँ घने जंगल होते हैं
पानी वहीं बरसता है॥
सौ मर्तबा कह दिया
मैं तुमसे प्यार करता हूँ
मग़र तुम हो कि
इम्तिहान लेने से
बाज नहीं आतीं!
उसे काफ़ी क़रीब से देखा था
उसकी पलक का एक बाल लम्बा था॥
तन्हाई का दुश्मन है ज़माना
हर शाम भीड़ ने घेरा है मुझे
एक दिया जलता था अब तक
जला रहा हूँ लाखों दिये बुझे॥
हम तो अपनी तक़दीर
ख़ुद लिखा करते हैं
दूसरों के भरोसे तो यहाँ
जानवर रहा करते हैं॥
ख़ाली पड़ी थी वो जगह
अपना समझ लिया
जब मन चाहा वहाँ
कचरा फेंक दिया॥
जब पैसा था तो
कभी शक्ल नहीं देखी
आज पैसा नहीं है तो
शक्ल देखते हो
कमाल करते हो!
हर बार ठगा है तूने
कितनी मर्तबा
रास्ते से वापस
भेजा है तूने॥
ता उम्र तेरे दर पर भटका
अब तो एक सौदा कर ले
मेरे पापों की गठरी रख ले
मुझको चलता कर दे॥
रुतबे में तुम
कितने ही बड़े हो गये हो
चाय आज भी
हमारे हाथों की ही पीते हो!
आज रिश्ते
इस क़दर
मायूस हो गये
अपने ही घर में
जाने को
पूछने के मोहताज हो गये॥
तुमसे बिछड़े ज़माना हो गया
कम्बख़्त हिचकियों का दौर
अभी तक
ख़त्म ना हुआ॥
ग़ज़ब का क़हर ढाते हो
अकेले में बुलाते हो
फिर ज़माने का
ख़ौफ़ बताते हो!
तुम भी कमाल करते हो
मेरा कहा
अनसुना करते हो
दीवारों के कान होते हैं
इस बात पर यक़ीन करते हो॥
रात को अँधेरे में लुट गये
ग़म नहीं
दिन में अपने ही नक़ाबों में घूमते हैं
ये भी कम नहीं॥
दिन भर ज़माने की बुराई करता हूँ
रात को आईना देख लेता हूँ॥
हर शख़्स यहाँ
ज़माने से ख़फ़ा है
ख़ुद को टटोल के देख
तू क्या ज़माने से जुदा है॥
वो इतना अमीर है
झुकता क्यूँ नहीं
ज़मीन बंजर पड़ी है
तुम कहते हो
कुछ उगता क्यूँ नहीं॥
ग़रीब थे जब तक
बेख़ौफ़ घूमा करते थे
अमीर बनते ही
नज़रबंद फिरते हैं॥
अन्न उगाता है
जो सबके लिये
उसके साथ
धोखा हो गया
सबको खिलाके
ख़ुद भूखा सो गया॥
बड़ी गाड़ियों में बैठकर
इतराते हो साहब!
मेरे ख़ून का
कतरा भी इसमें शामिल है
ग़र हो याद!
ग़ुस्सा जताने का
अजीब तरीक़ा
निकाल लिया
दाल में नमक
फिर ज़्यादा
डाल दिया॥
आँसुओं में इतनी
ताक़त है
कि पत्थर पिघला दे
तू बन जा ख़ुद पत्थर
उसको रूला दे॥
वो पार्टियों में
खाना बर्बाद कर रहे थे
उसी होटल के बाहर
कुछ लोग कचरे में
खाने का इंतज़ार
कर रहे थे॥
शराब पीकर
इंसान सच बोलता है
तो पीने दो
इन जमाख़ोरों के राज
बाहर आते हैं
तो आने दो॥
हमारे नेता भी
कमाल करते हैं
ग़रीबों की भीड़ जुटाकर
देश के विकास की
बात करते हैं॥
वो देश की तरक़्क़ी पर
बड़ी बड़ी बातें
कर रहे थे
वहीं कुछ लोग
नंगे बदन
पेड़ के पीछे छुपकर
उनकी बातें सुन
रहे थे॥
जहाँ पीने को पानी
भूखे को खाना
रहने को छत ना हो
वहाँ हाथ में मोबाइल थमाकर
कहते हो
डिजिटल बनो!
बारिश में उनकी पोल
फिर से खुल गई
लो एक बार और
राहत पैकेज की
घोषणा हो गई॥
मत पी इतना
सुधर जाता है
पीने के बाद
इतना सच
किधर से लाता है॥
जिसको अपना समझकर
घर दिया था
किराये पर
आज उसी घर में
रह रहा हूँ
किराये पर!
बड़ा खूबसूरत
मकान बना था
सुना वहाँ कभी
क़ब्रिस्तान बना था!
सरे राह चलते
मुझको लूट लिया
मदद करने का
अच्छा सिला दिया॥
ग़रीब क्यूँ काम करेगा
अगर दो रूपये में
आटा दाल चावल मिलेगा!
हल चलाकर धूप में
गर्दन मज़बूत की
पेड़ पर टंगे फंदे ने
ज़रा भी ना चूक की॥
सब कुछ जोड़ने के बाद
बड़ा इतराते हो
बड़ी ख़ूबसूरती से
अपनी मौत का
सामान जुटाते हो॥
तूने जैसा भेजा था
वैसा बिल्कुल नहीं
आ रहा हूँ
ज़माने भर का ताम झाम
अपने साथ ला रहा हूँ॥
समन्दर तू भी
अजीब है
उसी को सबसे पहले
डुबाता है
जो तेरे सबसे
क़रीब है॥
जितनी बड़ी आग
उतना ज़्यादा धुँआ होगा
ढूँढ के देखो रेगिस्तान में
कहीं तो कुआँ होगा॥
तकनीक ने इतना
सिमटा दिया
रिश्तों को
प्लास्टिक के
डिब्बे में छुपा दिया॥
चार पैसे कमाने के चक्कर में
अपने पैरों पर तो खड़े हो गये
जिन्होंने इन पैरों से चलना सिखाया
बस उनसे दूर हो गये॥
ना मंदिर में मिटा
ना मस्जिद में मिटा
मेरा हर ग़म तो
मैखाने में मिटा॥
मैं नहीं कहता कि
मैखाने जाओ
ग़म मिटाने की
कोई दूसरी जगह
तो दिखाओ॥
मैखाने क्या गया
शराबी बन गया
कण कण में है
तू बसा
वहाँ गया
तो हंगामा क्यूँ हो गया॥
मेरा असली हमदर्द
तो साक़ी है
हर वक़्त
पिला देता है मुझको
जब तक शराब
बोतल में बाक़ी है॥
क्या कहूँ मैखाने की हक़ीक़त
हर शख़्स यहाँ
सच बोलता है
बड़े बड़े राज़ खोलता है
क्या फ़ायदा
ऐसे धर्म के डेरों का
जहाँ हर शख़्स
झूठ बोलता है॥
मैखाने में
ख़ुद से मिल जाता हूँ
क्या करूँ किसी का
बुरा नहीं सोच पाता हूँ॥
बड़े बड़े दरों ने ठुकरा दिया
मैखाने गया मदद माँगने
साक़ियों ने
दो घूँट पिला दिया ॥
ना मिले दर्द बाँटने वाला
तो निराश मत होना
पकड़ लेना मैखाने की राह
हर शख़्स यहाँ
तेरा दर्द बाँटने की
रखता है चाह॥
वो गये बस्तियों में
ग़रीब का हाल पूछने
कीचड़ पर पाँव ना पड़ जाये
अपने कदम पीछे खींच लाये॥
वो कोयले की खदानों में
काम करके
कोयला हो गये
कमाल है
वो सोने के महलों में
रहने पर भी
सोना ना हुये!
महिला सशक्तीकरण पर चर्चा हो रही थी
बाहर एक ग़रीब बुढ़िया रो रही थी॥
वो आये वोट माँगने
हमको ढूँढते हुये
हमनें वोट दे दिया
उनको ढूँढने के लिये॥
दो मुल्कों की जंग में
इंसाँ बदल गये
हद तो तब हो गई
जब ख़ुदा बदल गये॥
वो मिट्टी की बात करते हैं
ख़ुद चाँदी के कप में
चाय पीते हैं
कमाल करते हैं!
अकेले सब कुछ करने का दंभ भरते हो
मरने के बाद चार आदमी क्यूँ करते हो॥
चार लोग क्या कहेंगे
ये वही चार लोग हैं
जो शमशान ले जाते वक़्त
तुम्हारा गुणगान करेंगे॥
अपनी हर ज़िद को
आज़मा के देख लिया
मुर्दों की ज़मीं पर भी
अपना घर बनाके
देख लिया॥
जिसको तबाह
करने निकले
उसके दर से ख़ुद
तबाह होके निकले॥
नाम के लिये
बदनामी समेट ली दामन में
छुप रहे हो घर में
छप रहे हो अख़बारों में॥
जंगल से शेर ग़ायब हो गये
इंसान से इंसानियत
हर शख़्स है
यहाँ डरा हुआ
यही है उसकी हैसियत॥
हाथों को काम नहीं
लोग बेकार फिरते हैं
हद हो गई
महानुभाव रोबोट लाने की बात करते हैं॥
महानुभाव इसको विकास मानते हैं
उस गाँव के बच्चे अंग्रेज़ी में बात करते हैं॥
स्टेशन पर एक शख़्स
भीख माँगता है
क्या ग़ज़ब की
अंग्रेज़ी बोलता है॥
उनके विकास के पैमाने
खरे नहीं उतरते
यहाँ फुटपाथ पर लोग
अभी भी हैं सोते॥
कहीं बाढ़
तो कहीं सूखा है
कोई नंगा
तो कोई भूखा है
राजनीतिक महकमे
बेअसर हैं
अभी-अभी
तो चुनाव जीता है॥
वो विदेश गये
देश की वाहवाही कर दी
अपने ही लोगों ने
स्टेशन पर चार नंगे
बच्चों की फ़ोटो ली
सोशल मीडिया पर अपलोड कर दी॥
जुर्म बड़ा करते हो
तभी नामी वकील करते हो॥
वो बोले मैंने
कभी कोई पाप
नहीं किया
पास टेबिल पर
चींटी थी
मसल दिया !
पंखों को थोड़ी सी हवा दे दे
थोड़ा और जीने की सज़ा दे दे॥
रक्खे सोता हूँ
तकिये के नीचे ख़ंजर
नींद में ना बदल जाये
ज़िन्दगी का मंज़र॥
अभी भी
ग़ुलामी कर रहे हो
अपनों के पेट भूखे हैं
औरों के प्याले भर रहे हो॥
मजबूरी का कैसा
मंज़र था
सिर पर ईंटों
का ढेर
पीठ पर
बच्चा बँधा था॥
एक पेड़
सीमा पर खड़ा था
मुझे शक है
दुश्मनों को
ऑक्सीजन भेज रहा था॥
अहिंसा पर
बड़े बड़े भाषण गढ़े
महफ़िल में कुत्ता घुस आया
सब उस पर टूट पड़े॥
मातृशक्ति पर
बात कर रहे थे
बार-बार माँ का फ़ोन
आ रहा था
चुपके से काट रहे थे॥
सालों पहले
एक अस्पताल खोला था
बड़ा सा ताला
लगा रहता है वहाँ
किसी ने बोला था॥
पूछते हो कुछ होता क्यूँ नहीं
जो कहते हो वो करते क्यूँ नहीं॥
कथनी करनी में
तुम्हारी फ़र्क़ है
इसीलिये बेड़ा
गर्क है॥
दिन-रात की
भागा-दौड़ी यही कहती है
ज़िन्दगी आठ तियाँ
चौबीस होती है॥
बड़े धार्मिक
दिखते हैं
सब पता है
अकेले में क्या करते हैं॥
नज़र नज़र
की बात है
लड़ जायें
तो मोहब्बत है
गड़ जायें तो
बग़ावत है॥
कैसे कहूँ
यहाँ हर शख़्स
समान है
यहाँ हर
झोपड़ी के सामने
ऊँचा मकान है॥
अमीरी कम कपड़ों में भी ढक जाती है
ग़रीबी पूरे कपड़ों में भी नज़र आ जाती है॥
दिन भर
मज़दूरी कराई
मेहनताना ना दिया
बनाई थी जो दीवार
दिन भर में
एक झटके में
गिराके चला गया॥
न्यायालय के सामने
एक पागल
फिरता है
अंग्रेज़ी में कुछ
बड़-बड़ करता है!
सड़क पर
ख़ुद का
मज़ाक़ उड़ा
रहा था
चार पैसे
कमा रहा था॥
विकास के
नये पैमाने
गढ़ते हैं
कुआँ खोद के
गाँव में
लोग मीलों से
पानी भरते हैं॥
असंभव को
संभव कर दिया
एक गाँव को
एक गाँव से
अलग कर दिया!
इतनी भी
तकलीफ़ ना दो
कि कोई बाग़ी
हो जाये
जलाके कुर्सी तेरी
तुझ पर ही
हावी हो जाये॥
वो बोले
पेड़ लगाओ
गड्ढे खुद गये
पेड़ तो नहीं लगे
बारिश में
गड्ढे ज़रूर
भर गये॥
सड़क पर
एक आदमी
तड़प रहा था
हिन्दू है या
मुसलमान
यही सोच रहा था॥
ग़ज़ब के
उसूल हैं तुम्हारे
मंदिर नंगे पैर
जाते हो
और
ग़रीब के घर में
जूते पहनकर
घुस जाते हो॥
बुजुर्गों को
सम्मानित किया
वहीं किसी ग़लतफ़हमी
के चलते
एक महिला ने
बुजुर्ग को
थप्पड़ जड़ दिया!
नंगे बदन
वो ढेला
हाँकता है
वहीं कोई कुत्ता
कार में से
झाँकता है॥
ख़ुद पर से
विश्वास खो दिया
जब से उस पेड़ पर
धागा बाँध दिया॥
मत उलझो
हार जाओगे
यहाँ जीतना ही
किसे है
हम अपने
घर जायेंगे
तुम अपने
घर जाओगे॥
किस कदर झुक गये
कल रात आये वोट माँगने
हम ना मिले
तो पर्चा
जूतों में रख गये॥
बोया पेड़
बबूल का
आम उग रहे हैं
तुम्हारे कारनामे
अलग ही कहानी
बयाँ कर रहे हैं॥
दिखने में थी
वो सीधी रेखा
दो मुल्कों को
उसने अलग करके
देखा!
हमनें पेड़ लगाये
सोचा यहाँ
छाँव होगी
तुमने पेड़ काट दिये
बोला यहाँ
इमारत होगी॥
तुम्हारी हर समानता
झूठी पड़ जाती है
जब एक नारी
घर की चारदीवारी में
बंद नज़र आती है॥
गिरगिट बचने के लिये
रंग बदलता है
ऐ इंसान
पर तू क्यूँ रंग
बदलता है!
दूसरों को
दिन-रात कोसना
बंद करो
अपनी गिरेबान में
झाँकना शुरू करो॥
अफ़वाहों का दौर
जारी है
सवाल ये है कि
कौन कितना भारी है॥
सपनों पर
नींद भारी
पड़ गई
फिर एक बार
आँख थोड़ी देर तक
लग गई॥
दिन-रात तपकर
कितनी मेहनत से
ये दुनिया बनाई
क़िस्मत का जामा पहनाने में
तुमने देर ना लगाई॥
जब सम्पन्न थे
तो बिना माँगे
उधार दे दिया
आज तकलीफ़ में हैं
तो मुँह फेर लिया॥
इंसान को इंसान की तरह
कब तुमने चुना था
वो आज भी
तुम्हारी पीक के लिये
पीकदान लिये
खड़ा था॥
महानुभाव स्वच्छता पर
कुछ ज़्यादा ही बोल गये
अपने तम्बाकू गुटखे के पैकेट
मंच पर ही छोड़ गये!
बाल मज़दूरी पर
ज़ोरदार भाषण दे रहे थे
ट्रैफ़िक सिग्नल पर
कुछ बच्चे
उनकी गाड़ी का
काँच साफ़ कर रहे थे॥
शिक्षा पर
बहुत ज़ोर देते हैं
सुना है
उनके गोदाम
के मज़दूर
अभी भी
अँगूठा टेकते हैं!
पेड़ नहीं काटेंगे अब
ऐसा प्रण ले रहे थे
लकड़ी का नया फ़र्नीचर
कुछ मज़दूर
उनके घर में
रख रहे थे॥
ग़रीबी मिटी तो
अमीरी ख़ुद ब ख़ुद
मिट जायेगी
इतनी सी बात
किसी के समझ
नहीं आयेगी॥
अगर ग़रीब ही ना रहा तो
अमीर किसे कहोगे
ग़रीबी मिटाने वालों
ख़ुद को मिटता
कैसे देखोगे॥
हर हाथ को
काम मिलेगा
बड़े ज़ोरों से बोल रहे थे
भिखारी उनकी बातों को
बड़े ध्यान से
सुन रहे थे॥
बाढ़ का दौरा
हेलीकॉप्टर से करते हैं
ख़ुद को जनता का
प्रतिनिधि कहते हैं !
ज़िन्दगी और मौत
साथ चल रही है
एक पिघल रही है
तो दूसरी जम रही है॥
जब तक मौत है
ज़िन्दगी जीने का मज़ा है
चुनौती ना हो जब तक
खेलने में क्या मज़ा है॥
जिनका बोझ
किसी और को उठाना था
वो कंधे आज
किसी और का बोझ
उठा रहे हैं
हम और आप
ट्रेन से उतरकर
उन पर अपना सामान
लाद रहे हैं॥
खून जम गया
मग़र चिल्ला रहा होगा
तेरी हैवानियत का
सबूत बता रहा होगा॥
दंगों में एक ही
रंग का खून
बहा होगा
हिन्दू का
मुस्लिम का
किसका है
पता ना होगा॥
खून करके ख़ंजर
साफ़ कर लिया
कमाल है
ख़ुद ही इंसाफ़
कर लिया॥
जो तुम्हारी ज़रूरतें हैं
वो किसी के सपने हैं
जो तुम्हारे सपने हैं
वो किसी की आदतें हैं
ये सिलसिला
यूँ हीं क़ायम है॥
अजीबोग़रीब बात है
समझ आ गई तो
वाह वाह
नहीं समझ आई तो
बकवास है॥
सुना है
इस शहर के लोग
आपस में बात नहीं
करते हैं
कहीं कोई कुछ
माँग ना ले
इसलिये डरते हैं॥
इस दुनिया में
कुछ नहीं मिटता
घूम फिरकर
तुमको ही है मिलता
सोच समझकर
उठाना हर क़दम
दुःख दर्द
यूँ ही नहीं मिलता॥
दंगों में मरने वाले इंसान थे
ना हिन्दू थे ना मुसलमान थे॥
जितनी मौत पल पल क़रीब आ रही है
उतनी ही ज़ोर से ज़िन्दगी चिल्ला रही है॥
अगर चमत्कार होते
तो श्रीकृष्ण अर्जुन से
गीता ना कहते!
कृत्य महत्वपूर्ण नहीं है
महत्वपूर्ण कर्ता है
कृष्ण मारें तो वध
कंस मारे तो हत्या है॥
रिश्तों पर एक दरार सी पड़ गई
उनकी हर बात पैसों पर अड़ गई॥
कहीं कोई बेवजह
तोड़ ना ले तुमको
काँटों के बीच रहना भी
ज़रूरी समझो॥
कह रहे थे
मुझे चीज़ों से लगाव नहीं
काँच का गिलास
क्या टूटा
उनकी चीख निकल गई॥
इधर दो प्रेमी
साथ बैठे थे
उधर समाज के ठेकेदार
बेचैन हो रहे थे॥
धूम्रपान जान लेवा है
बोलकर मंच से निकल गये
किसी कोने में
धूम्रपान करते
पकड़े गये॥
देश का दुर्भाग्य देखिए
भारतीय रेल में
सामान्य श्रेणी का
हाल देखिए ॥
जिस दिन भारतीय रेल से
जनरल बोगी हट गई
मान लेना देश की
आधी समस्या मिट गई॥
पूरा देश
आरक्षण के ख़िलाफ़
खड़ा हो गया
भारतीय रेल की
सामान्य श्रेणी देखकर
मैं भी आरक्षण के
ख़िलाफ़ हो गया॥
कई दिनों से वो
अपने माँ-बाप से ना मिला था
सुना है शहर में
नया वृद्धाश्रम खुला था॥
बचपन में जिसकी
शादी कर दी थी
वो आज अपने
हमसफ़र को तरसती थी॥
वो शख़्स हर वक़्त
गुनगुनाता था
तकलीफ़ गहरी थी
हर वक़्त मुस्कुराता था॥
मंदिर जाते वक़्त
बड़े धार्मिक लगे
बाहर निकलते ही
झगड़ने लगे
लेने गये थे
कुछ और
ले आये
कुछ और !
जो हमसे
वोटों की भीख
माँगते हैं
कमाल है
कुछ लोग
उनके सीने पर रोके
अपने हक़ की
भीख माँगते हैं॥
चुनाव से पहले
जो गली गली
दिखे थे
आज लोग पूछते हैं
वो आख़िरी बार
कब दिखे थे!
एक ही मनुष्य के
दो पहलू हैं दिखते
जो जीकर भी
नहीं जीते
जो मरकर भी
नहीं मरते॥
ये छोड़ दो
वो छोड़ दो
पाना सज़ा है
पहले पा तो लें
पाने के बाद
छोड़ने का
अलग ही मज़ा है॥
ये कैसी सीख दी गई
पहले कहा
अनजानों से बात
मत करो
फिर एक अंजान से
शादी कर दी गई॥
रात कहीं जब होती है
दिन कहीं और है निकलता
जीवन में तेरे अँधेरा
किसी और के यहाँ उजाला है करता॥
कश्मकश में
कट रही है ज़िन्दगी
आधी घर
आधी दफ़्तर में
बँट रही है ज़िन्दगी ॥
सबकी नज़रों में
सही बनके
ख़ुद को उठा लिया
ख़ुद की नज़रों का
सोचा नहीं
ख़ुद को कितना
गिरा लिया॥
बाहर से जितना
खुश हो जाओ
अंदर पकड़े जाओगे
जब भी बैठोगे अकेले
चैन नहीं ले पाओगे॥
अपनी कीमत कम आँक रहे हो
दूसरे के माल में झाँक रहे हो ॥
ग़ुलामी का
ऐसा मंज़र देखा था
उनके जूतों की चमक में
अपना चेहरा देखा था॥
इमारत का काम
ना रूका था
कुछ दिन पहले
वहाँ एक मज़दूर
मरा था !
कितनी सीधी राह चलते हो
आश्चर्य है
कोई गलती नहीं
करते हो॥
अकेला शख़्स
राजा होता है
भीड़ में हर शख़्स
प्यादा होता है॥
फूल ना उगा सको
तो कोई ग़म नहीं
काँटें कम कर सको
ये भी कम नहीं॥
वो बोले
दिल में रहो
हम रह गये
दिल टूटा
हम ढह गये
हँसते-हँसते
सारे ग़म सह गये॥
वो पागल है
सच बोलता है
हर दिमाग़दार यहाँ
झूठ बोलता है॥
कौन यहाँ
सहन कर पाता है
बिना किसी की मदद के
कोई कैसे आगे
बढ़ जाता है॥
जो हो वो दिखते नहीं
जो दिखते हो वो हो नहीं
हद तो ये है
इतने पर भी हिचकते नहीं॥
मर्द का सर
शर्म से क्यूँ नहीं
झुक जाता है
जब वो
एक औरत को
कोठे पे बिठाता है॥
अमीरी और ग़रीबी में
भेद मुनासिब है
एक बदमिज़ाज है
एक बदनसीब है॥
सच को दबाने के लिये
झूठ को बिठाते हो
आग को ठंडा करने के लिये
बर्फ़ को दिखाते हो॥
कीचड़ में
कमल खिल सकता है
गंदी बस्ती से भी
महात्मा निकल सकता है॥
अपराधी और संत में
समानता है एक
दोनों अंदर-बाहर
हैं एक ॥
बड़ी जल्दी
भगवान बदलते हो
एक मंदिर में
मन्नत पूरी नहीं हो
तो दूसरे को निकलते हो॥
मनुष्य हो तुम
कैसे रूक सकते हो
जलने से पहले
कैसे बुझ सकते हो!!
तुम्हारा शोषण दिन-रात हुआ
चीखें तुम्हारी किधर गईं
चार-दीवारी में क़ैद हो कबसे
दीवारें क्यूँ ना ये तोड़ी गईं॥
आरज़ुओं का दमन हुआ
आँसू भाप हो गये
एक ही बाप था उनका
अब ना जानें कितने बाप हो गये॥
तेरी हर चीज़ पर
इंसान अपना हक़ समझता है
इस दुनिया में
हवा पानी सब बिकता है
चोर को चोर कहो
तो ठीक है
इंसान को इंसान कहो
तो डर लगता है॥
प्रकृति ने तुम्हारे लिये
थाली में सजाके
सब कुछ परोसा है
बात बस वहाँ पर
अटकी है
क्या तुमको
ख़ुद पर भरोसा है॥
उन्होंने ताज छीना
सोचा भिखारी बना दिया
अंदर तो बादशाहत भरी थी
महल फिर से बना दिया॥
ना दंगा ना फ़साद
ना किसान आत्महत्या
राजनीतिक गलियारे मायूस
ये देश को हुआ क्या॥
यहाँ इंसान
रात को कम
दिन में
ज़्यादा सोता है
चश्मा सिर पर लगा हुआ है
हर जगह
चश्मा ढूँढता है॥
कैसे माता पिता हो गये
मेले में जिनके बच्चे खो गये॥
आओ कुछ
हंगामा करते हैं
एक नया भगवान
पैदा करते हैं॥
सड़क पर एक आदमी
दर्द से कराह रहा था
श्रद्धालुओं का एक जत्था
उसके पास से गुज़र रहा था॥
भूखे को रोटी नहीं
नवयुवक को काम
देखो आध्यात्मिकता बिक रही
सुबह शाम खुलेआम॥
वोट माँगने
आया था
एक साधारण व्यक्ति
चुनाव जीतते ही
बन बैठा है
वीआईपी !
पिंजरे में
बंद चिड़िया
चिल्लाती थी
वो सोचते रहे
गुनगुनाती थी
शोर आज़ादी का
वो क्या सुनेंगे
जिन्होंने ज़िन्दगी भर
ग़ुलामी की॥
जिससे भी पूछो
कैसे हो
सब कहते हैं
मज़े में हैं
सब मज़े में हैं
तो फिर दिल्ली में
इतना हंगामा क्यूँ है॥
वो खोज रहे हैं तुझे दर-बदर
पूछते हैं तू मिलता क्यूँ नहीं
मैं खोज रहा हूँ वो जगह
जहाँ तू है ही नहीं॥
जवानी तू किस
दहलीज़ पर खड़ी है
जहाँ बचपन बुलाता है
बुढ़ापा डराता है॥
पड़ोसी को दुश्मन
दुश्मन को पड़ोसी बना लिया
दूसरों की आग से
अपना ही घर जला लिया॥
वो हर जगह
विकास के दावे पर
दंभ भर रहा था
विकास का दर्द तो
सरकारी दफ़्तर में
टँगा पंखा
अच्छे से बयाँ
कर रहा था॥
राजनीति ऐसी लीला है
जहाँ सबका कैरेक्टर ढीला है
चुनाव से पहले जोड़ते हैं जो हाथ
चुनाव जीतते ही दिखाते हैं आँख॥
आज तुम हारे
कल हम हार जायेंगे
ग़म किस बात का है
इसी तरह तो उल्लू बनायेंगे॥
एक अजीब सी
आदत हो गई
सियासत में देशभक्ति
देशभक्ति में सियासत हो गई॥
उसकी मेंहदी का रंग खिल रहा था
सीमा पर जंग का माहौल पल रहा था॥
इतना सब कुछ
खोज लिया
जाओ एक नया धर्म भी
खोजो अब
इंसान बना दे
फिर से उनको
मज़हबी कीड़े
बन बैठे जो सब॥
बड़ा पहाड़
छोटे पहाड़ पर हँस रहा था
उसका ऊपरी हिस्सा
टूट के गिर पड़ा
अब वो उसकी
बराबरी पे खड़ा था॥
उनके गाँव की सड़क
बड़ी टेढ़ी मेढ़ी है
विकास को पहुँचने में
अभी देरी है॥
सारी ज़िन्दगी
उन्होंने अँधेरे में
गुज़ार दी
रोशनी की एक किरण भी
किसी ने ना उधार दी॥
सड़क के किनारे
गुज़ार रहा था ज़िन्दगी
एक बुलडोज़र ने आके
ज़िन्दगी उजाड़ दी॥
नाकामियों के सहरे
सर चढ़ने लगे
जब से अख़बारों में
उनके इश्तहार बढ़ने लगे॥
चुनावों में तो तुम
हार जाते हो
ज़रा ये तो बताओ
रैलियों में इतनी भीड़
कहाँ से लाते हो॥
पैसा पानी की तरह बह जाता है
हुक्मरानो के बंदोबस्त के लिये
चंद छछूँदरों से बचते फिरते हैं वो
अपनी जान बचाने के लिये॥
तेरे किरदार पर
कैसे करूँ एतबार
पानी में डुबकी लगाके जो
पानी पी लेता हर बार॥
सच को कितना ही दबा लो
सच कहाँ बदलता है
ये तो फ़ितरत है झूठ की
हर पल चेहरा ये बदलता है॥
इस शहर में
कमाल होने वाला है
दरिया ये लाल
होने वाला है
धर्म के ठेकेदार
जुटे चुके हैं
कोई हलाल
होने वाला है॥
समाज को दूषित
करने वालों को पाला है
सलाख़ों के पीछे बिठाके जिनको
खिलाया निवाला है॥
ईमान देखना हो तो
मैखाने चले जाना
पीता नहीं कभी
पिलाने वाला वहाँ॥
हमसाया जानकर
दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया
मिलाना था हाथ
उसने हाथ ही उखाड़ लिया ॥
( भारत-पाक सम्बन्धों पर)
इक मुक़ाम की तलाश में
घर से निकला था
अब उस मुक़ाम की
तलाश है
जो वापस घर पहुँचा दे॥
(नौकरी करने वालों के लिये)
हर शख़्स यहाँ
हर रोज़ एक नई
शय* की तलाश में ही तो है
ख़ुद को भूलकर
एक ज़िन्दा लाश ही तो है॥
(शय= चीज़)
आज़ादी पर भाषण दिया
खूबसूरत तितली दिखी
पकड़ लिया !
ख़ुद कीचड़ में सने हैं
जिस्म धुंधला पड़ गया
दूसरे पर कीचड़
उछाल के सोचते हैं
मैं धुल गया॥
( भारतीय चुनाव के संदर्भ में)
जिनके बनाये घर में
ठेकेदार मलाई छानते हैं
धूप में जला बैठे वो हाथ
अपनी लकीरों का हिसाब माँगते हैं॥
जिस अन्न को खाने को
सब तरसे हैं
वही तेरे गोदामों में
आजकल सड़ते हैं॥
इस क़दर
बहका हुआ है
आज का युवा
जिस पेड़ पर फल नहीं
उसी पर
पत्थर मार रहा॥
जिस शहर में ग़रीबी
बिना कपड़ों के
घूमती थी
सुना है वहाँ
कपड़ों की
नई फ़ैक्ट्री
खुली थी॥
चीज़ें नई हों
तब तक ही फ़िक्र होती है
बाद में तो
दाग छुटाने की भी
हिम्मत नहीं होती है॥
गया था एक मसला लेकर
किसी नेता के पास
उसके मसले सुनकर
ख़ाली हाथ
वापस लौट आया॥
कमाल करते हो
किस क़दर प्यार करते हो
हाथ गले में डालकर
गर्दन हलाल करते हो॥
मैं कलम में स्याही नहीं
लहू भर रहा हूँ
रोक सको तो रोक लो
मैं अंदर ही अंदर मर रहा हूँ॥
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