*श्रीमते रामानुजाय नमः*
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*‼️गुरु ही सफलता का स्रोत ‼️*
*भाग १२:--*
*गतांक से आगे:-------*
जीवन पौरुष के साथ जीने के लिए प्राप्त हुआ है और वह पौरुष गुरुद्वारा प्रदत्त ज्ञान का पूर्ण रूप से पकड़ कर ही प्राप्त हो सकता है। सद्गुरु हर जीवन में साथ रहते हुए उस मार्ग पर ले जाते हैं जो पूर्णता का, पौरुष का मार्ग है । शिष्यों को चेतना देता हुआ यह ओजस्वी प्रवचन सद्गुरु देव के अपने निराले शिष्यों के जीवन भर व उसके बाद सदा ही मार्गदर्शन करते हैं।
*लक्ष्मी वदैव वदितं सदैव,*
*पूर्णो वतां वं परिपूर्ण रूपं*
*आगच्छ मां भवतु वै परमं प्रसादं,*
*ज्ञानम विचै क्षण वतां परमं च दिव्यं*
*विष्वामित्र संहिता* में महर्षि विश्वामित्र अपनी ओजस्वी वाणी में एमजीआर अत्यंत नम्र शब्दों में भगवती महालक्ष्मी की प्रार्थना करते हुए चिंतन करते हुए ,नमन करते हुए कहते हैं कि:- *इसमें कोई संदेह नहीं रहा है कि मैं जिस विशिष्ट प्रयोग को प्रारंभ कर रहा हूं उसे मैंने उर्ध्वचेता ज्ञान से प्राप्त किया है इसलिए इस बात में तो कोई संदेह नहीं है कि तुम्हें अपने अष्ट स्वरूप में मेरे घर में स्थापित होना ही है मगर प्रार्थना यह है कि सभी प्रकार से संपन्नता आने के बाद भी मुझ में अहम भाव नहीं आए मुझमें कुमार्ग पथ पर चलने की भावना नहीं पैदा हो मैं सही कार्यों में उस धन का सदुपयोग कर सकूं और जीवन में यश सम्मान प्रसिद्धि और पूर्वजों के गौरव को ऊंचाई की ओर अग्रसर कर सकूं मैं ऐसा ही आशीर्वाद आपसे चाहता हूं* मैं अपनी सिस्टर को ऐसा ही आशीर्वाद प्रदान करना चाहता हूं क्यों नहीं जीवन में पूर्णता एवं दिव्यता प्राप्त हो विश्वामित्र ने तंत्र और मंत्र के द्वारा जीवन में उच्चता एवं श्रेष्ठता को प्राप्त किया तंत्र का यह तात्पर्य नहीं है कि आप नंगे रहे मुंडो की माला धारण करें श्मशान में बैठ जाए या अपने तन पर राख लपेट लें शराब सिगरेट पिए तंत्र का मतलब यह है ही नहीं तंत्र का तात्पर्य है कि अत्यंत व्यवस्थित तरीके से कार्य संपन्न हो सिस्टमैटिक हो हम प्रजातंत्र में रहते हैं यह भी तंत्र है उस प्रजा का राज्य सुचारू रूप से चले उसे प्रजातंत्र कहते हैं अगर राजा का राज्य सुचारू रूप से चल रहा है उसे राजतंत्र कहते हैं और हम सही ढंग से लक्ष्मी को प्राप्त करें उसे लक्ष्मी तंत्र कहते हैं महर्षि विश्वामित्र ने उर्ध्वचेता रूप से तंत्र का निर्माण किया और अद्वितीय संपन्न बन सके उर्ध्वचेता का अर्थ है मनुष्य उस आध्यात्मिक उच्चता को प्राप्त कर सके जिसे *पूर्णमदः पूर्णमिदं* कहां गया है शिखा तात्पर्य है जो संसार की ओर हर कदम बढ़ा रहा है मनुष्य जब जन्म लेता है तो मनुष्य का पहला कदम मृत्यु की ओर बढ़ता है उसकी उम्र अगर 64 साल 23 दिन है तो जन्म के दूसरे दिन 64 साल 22 दिन ही हो जाती है और धीरे-धीरे स्वास श्वास वह मृत्यु की ओर अग्रसर रहता है अंततोगत्वा शमशान में जाकर उसका सफर समाप्त हो जाता है क्या यही जीवन है? यह जीवन नहीं है शमशान की ओर जाने वाला जीवन नहीं कहलाता जो पैदा हुआ है वह मृत्यु को प्राप्त होगा ही मगर यह जरूरी नहीं है क्योंकि शास्त्र कहते हैं कि वशिष्ठ अभी मरे नहीं क्योंकि उनका नाम आपको और मुझे याद है उनके बेटे का नाम याद नहीं ना मुझे ना आपको विश्वामित्र भी नहीं मरे अत्रि,कण्व,पुलस्त्य,शंकराचार्य, श्रीस्वामी रामानुजाचार्य, महावीर स्वामी, आदि आदि सभी अभी तक जीवित है जीवित का तात्पर्य है जिनकी कीर्ति जीवित रहती है दिलकश जैसे जीवित रहता है। जीवित कब रहता है? तब जब जीवन के पथ पर चलते चलते सदगुरु मिल जाएं *हमारे न जाने कितने पूर्वज कितने मित्र विचार करते ही रहते हैं की हम गुरु के पास पहुंचे और विचार विचार में हैं उनका जीवन समाप्त हो जाता है सद्गुरु के पास से निकल जाते हैं पहचाना नहीं पाते क्योंकि उनके पास वो दृष्टि नहीं है वह भाव नहीं है वह श्रद्धा नहीं है और जब गुरु में श्रद्धा ना हो भाव ना हो* तो कभी भी हमें सद्गुरु की प्राप्ति नहीं होती और जब गुरु की प्राप्ति नहीं होती तो हमारा जीवन अंधकार में रहता है और उसी अंधकार में रह करके यह जीवन समाप्त हो जाता है हम आजकल टालते रहते हैं ना तो गुरु प्राप्त होता है ऊर्ध्वगति ना वह अपना कल्याण कर पाते हैं और ना पूर्वजों का केवल सांसारिक कीचड़ में फंस कर के अपने अहम को मजबूत करते रहते हैं इतना पैसे वाला हूं मेरे इतने मित्र हैं मैं यह नौकरी कर रहा हूं या व्यापार कर रहा हूं इसी में पूरा जीवन समाप्त हो जाता है और जो उनका इष्ट मित्र रिश्तेदार सद्गुरु की शरण लेकर उनकी अर्चन वंदन और मुक्ति का मार्ग चुनता है उसकी हंशी उड़ाते हैं उसे पागल भिखारी आदि समझते हैं सद्गुरु के पास बैठना उनकी पूजा करना उनका पाद तीर्थ अर्थात चरणामृत लेना एक घृणित कार्य समझते हैं फिरौन का कल्याण कैसे संभव है शास्त्र कहता है
*कुलं पवित्रम जननी कृतार्थ, वसुन्धरा पुण्यवती च धन्या।*
*स्वर्गस्थितो हि पितरोपि धनयः, येषां कुले वैष्णवा नाम ध्येयं।।*
*अर्थात:- वह कुल वंश पवित्र हो जाता है वह मां कृतार्थ हो जाती है वह पृथ्वी पुण्यवान होकर धरा हो जाती है स्वर्ग में स्थित सारे पूर्वज धन्य हो जाते हैं यम की यातना से मुक्त होते हैं जिस वंश में भगवान श्री लक्ष्मी नारायण का शरणागति मंत्र लेकर मनुष्य सांसारिक जीवन से ऊपर उठकर रामानुज दास बन जाता है*
आप सभी का कल्याण हो श्री लक्ष्मी नारायण सदैव अपनी कृपा बनाए रखें सभी शिष्यों का सभी भक्तों का मनोरथ सिद्ध हो
*आज गुरु ही सफलता* *का स्रोत लेखन कार्य* *संपूर्ण हुआ आप सभी से विदाई लेता हूं अपने* *अगले लेख के साथ पुनः आपकी सेवा में उपस्थिति दूँगा*
*अनेकानेक मंगला अनुशासन*
*जय श्रीमन्नारायण*
*विजयी भव विजयी भव विजयी भव*
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*श्रीमहंत*
*हर्षित कृष्णाचार्य*
*श्री जगदीश कृष्ण शरणागति आश्रम*
*लखीमपुर- खीरी*
*मो0:-9648769089*