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इश्क में शायरी

18 नवम्बर 2022

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इंतजार है बरसों से, इंतिहां तो ना लो
दिल  लगाया है तुमसे , सजा तो ना दो

गुजारिश  है  निगाहों  से  तेरी,
दीदार का इतना जुर्माना तो ना लो

डूबे हुए हैं किनारे गिलासों में,
अब इतनी जल्दी सहारा तो ना दो



गीतों  के  परिंदे  आजाद   कर  दू  क्या
जख्मों  के  दर्द का इलाज  कर दू  क्या
छुपा  रखी  है  आंखों  की  हदबंदी  में
तुम्हारी इक तस्वीर सरेआम कर दू क्या 



मुकद्दर जिंदगी की गुफ्तगू में हैं
दिल ,  दिल  की  रूबरू  में  है
   मैं पूछता जमाने से क्या
     तू किसकी हूबह में है



बंधनों के आगे दम तोड़ना  पड़ता है 
हो  न  जो  वो भी  बोलना  पड़ता है
ख्वाहिश  थी  हमारी  जाने की कहीं,
मगर यहां रास्ते भी बदलना पड़ता है


क्यों  हम बेगाने लगते है तुमको
क्या फिर शर्माने लगते है तुमको
कैसा फेर ये फरेबी दिल की कशिश में,
क्या हम दीवाने लगते है तुमको


               -कुमार आदिब "फिज़ा"
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