जन्नतनशीन आयशा,दुआओं में याद रखना
डॉ शोभा भारद्वाज
25 फरवरी अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस से पहले आयशा साबरमती
की गोद में समा गयी वह पढ़ी लिखी थी जीना चाहती थी. वह केवल 23 वर्ष की थी .उसके
शौहर आरिफ ने सोचा था वह चुपचाप सदैव के लिए अपने मायके में सो जायेगी लेकिन आयशा
ने चुपचाप जिन्दगी को अलविदा नहीं कहा अपने
70 मिनट तक आरिफ से बात की बातचीत की वीडियो
रिकाडिंग की . आयशा के पति ने कहा, 'मैं तुम्हें लेने नहीं आऊंगा. तुम्हें
अवश्य मर जाना चाहिए. उस समय का वीडियो बनाकर मुझे भेजना. उस वीडियो को देखने के
बाद ही मुझे तुम्हारे मरने का यक़ीन होगा. बेटी ने अपने पिता और माँ को भी खुदा हाफिज कहा वह बिलख – बिलख कर
उसे रोकते रहे देश की बेटी का जबाब था “हम प्यार करते
हैं आरिफ से. मैं खुश हूं कि अल्लाह से मिलूंगी. लेकिन दुआ करती हूं कि दोबारा
इंसानों की शक्ल न दिखाए.और प्यारी सी नदी,
प्रार्थना करती हूं कि ये मुझे अपने आप में समा लें’.” एक छलांग सब कुछ समाप्त . आयशा मीडिया की
सुर्खियाँ, ब्रेकिंग न्यूज बन गयी जिसने उसका आखिरी वीडियो देखा उसकी आँखे भर आई
.देश की बेटी समाज के सामने प्रश्न छोड़ गयी उसका कसूर क्या था ?
इस्लाम मजहब एवं
शरियत में दहेज की इजाजत नहीं थी दहेज लेना गुनाह माना गया है फिर भी दहेज चलता है
.शौहर के साथ निकाह हुआ दोनों ने कबूल किया था उसके पिता ने अपनी हैसियत के हिसाब
से दहेज दिया फिर मांग कैसी ? बेटी मायके बिठा दी गयी दुबारा डेढ़ लाख दिया फिर
आयशा को मरने के लिए मजबूर क्यों किया गया ?
आयशा की आवाज ,आज और
इससे पहले असमय मरने के लिए मजबूर कर दी गयी बेटियों की आत्मा की आवाज है , देश की हर बेटी पूछ रही
है मुझे दहेज के दंश से क्यों डसा जा रहा है क्यों मरने के लिए मजबूर किया गया था
कुछ जल गयी या जला दी गयीं कुछ फांसी के फंदे पर झूलने के लिए मजबूर कर दी गयी .जाने
कितनी लडकियाँ दहेज की आग में तड़फ – तड़फ कर मरने के लिए मजबूर की गयी . जो हिम्मत
कर गयी माँ , पिता के पास लौट कर अपने परिवार के संरक्षण में पैरों पर खड़ी हो गयी बच
गयी . भारत के हर धर्म समाज संस्कृति की बेटियाँ अधिकतर चुपचाप सो गयीं कुछ को ही मरने
से पहले मैजिस्ट्रेट के सामने बयान कलमबंद कराने का अवसर मिला था लेकिन आयशा
चुपचाप नहीं सोई वह एक आवाज बन गयी वर्षों गूंजती रहेगी है ,लेकिन ऐसा जलजला आया
जिसने देश को हिला दिया हर माँ पिता और भाईयों की आँख में आंसू है , प्रश्न है
बेटी होना क्या गुनाह है ?
राजनेता ओबेसी क्रोध क्षोभ में तकरीर देना . इस्लामिक
स्कालर ,मौलाना दर्द से कराह उठे उनकी वाणी में दर्द और रोष दोनों महसूस किया जा
सकता है . जुम्मे की नमाज की तकरीर में इस्लामिक स्कालर आयशा की मौत के कारणों
दहेज के खिलाफ आवाज उठाई दहेज को गुनाह बताया . हिन्दू धर्म गुरु भारत के हर धर्म
की बेटी के लिए आहत हैं उन्होंने कुभ पर्व से दहेज प्रथा का विरोध किया बेटियाँ
धर्म ,जाति से ऊपर उठ गयीं .
ईरान में शिया एवं सुन्नी समाज के निकाह देखे
कहीं दहेज का जिक्र नहीं बेटी विदा होती हैं दावत दूल्हे के घर में दी जाती है
मेहर की रकम भी शादी से पहले दी जाती है या यदि लिख भी दी गयी तलाक काजी की अदालत
में होते है यदि मेहर लिखित है शौहर पहले रकम अदा करता है कोई बहाना नहीं चलता .
वहाँ बेटियाँ बोझ नहीं हैं अपने मम्मा बाबा का ध्यान रखती हैं बेटी के घर में बेटी
की माँ शान से सिगार पीती मैने देखी हैं पहले हैरानी हुई थी .एक खानम ने हंस कर
बताया हमारे यहाँ जब पैगाम लेकर जाते हैं लड़के की हर खूबियों के साथ एक खूबी बेटा
आपका अपना होकर रहेगा लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है घर जवाई बन कर रहेगा .मेरी ईरानी
मित्र कहती थी मेरी शादी होगी मोटी रकम मेहर में आएगी माँ बाप का ध्यान भी मुझे
रखना है मेरे दोनों भाई अपनी शादी के लिए मेहर जुटाएंगे अपनी खानम के सुख दुःख का
ख्याल रखेंगे लेकिन मेरे बाबा की कोठी मेरे भाईयों को मिलेगी . हाँ यदि मेरा तलाक
हो जाएगा मेरे बाबा का घर मेरे लिए सदा खुला मिलेगा . एक कस्बे में खुर्दी शादी
में बेटी की विदाई मैने देखी बेटी को पीछे से शीशा दिखाया गया . विदाई का दृश्य
मुझे रुला देता है मुझे बेटी की माँ ने हैरान होकर पूछा अरे खानम आप रो क्यों रहीं
है बेटी को विदाई के समय शीशा इस लिए दिखाते हैं पीछे तेरे माँ बाबा का घर तेरा
अपना है .
हमारे यहाँ पहले
बक्त में बेटी को उपदेश दिया जाता था मायके से डोली में जा रही है सुसराल से अर्थी
में सुहागन वेश में अंतिम यात्रा में संसार से विदा लेना .विदा होते समय बेटी पीछे
मुड़ कर नहीं देखती वह अपने सिर के ऊपर से पीछे ‘जो ’ उछालती है जिसे माँ अपनी झोली
पसार कर लेती है बेटी जाते समय भी परिवार के लिए शुभकामनाएं करती है .पाकिस्तान
एवं भारत के पंजाब
में बेटी की विदाई के समय गाया जाने वाला गीत सुन कर हर दिल रो देता है बेटी का
पिता को उल्हाना देना
साडा चिड़ियाँ दा चंबा वे बाबल ,असां उड़ जाणा
साडी लम्मी उडारी वे , बाबल केहड़े देस जाणा
बाबा हम चिड़ियों के
झुड जैसी है हमें एक दिन यहाँ से उड़ जाना है न जाने कितनी ऊंची उड़ान हो न जाने किस
देश जाना पड़े . मेरी उड़ान भी अपने देश से ईरान तक थी . मेरी ननद की उड़ान फिजी
आईलैंड तक थी .बेटी विदाई से पहले अनेक बहाने करती है बाबा के पास हरेक का जबाब
होता है बेटी आखिरी शस्त्र चलाती है
तेरियां भिडीयाँ गलियाँ' च वे, बाबल डोला नहीं लंघदा
इक इट पुटा देवाँ , धिए घर जा अपणे
बाबा तंग गलियों से मेरा डोला नहीं निकल रहा
, एक – एक ईट हटा दूंगा बेटी अपने घर जा .
डोला गलियों से निकलते हुए खेतों तक पहुंच गया कहार सुस्ताने के लिए ठहर गये डोला
धरती पर रख दिया बेटी ने डोली का पर्दा हटा कर देखा अपना खेत था लहलहाती गेहूं की
फसल से एक बाल तोड़ी दाने निकाल कर बिखरते
हुए अपनी पिता , भाईयों और भाभियों को दिल से शुभकामनायें देती है .
हम कब दहेज के विरोध में आवाज उठायेंगें हमारा
समाज कब एक साथ दहेज के विरुद्ध उठ खड़ा होगा कब दहेज के लोभियों की बरात बिना
दुल्हन लिए लौटेगी. पुरानी फ़िल्में देखते
हैं उनमें सबसे मजबूर बेटी का बाप और भाई दिखाई देते हैं शादी के मंडप पर बैठने
फेरों से पहले क्या माँगा था क्या रह गया बरात लोटा लेने की धमकी बेटी के बाप के
जुड़ते हाथ बेटे के बाप के पैरों में अपनी पगड़ी रखते देख कर आँखें भर आती थीं लेकिन
फिल्म खत्म दर्द हाल से बाहर आते ही गायब हो जाता है लेकिन बेटियों ने उसका जबाब
दिया हर क्षेत्र में तरक्की की लड़कों से भी आगे निकल गयीं फिर भी आयशा को जल समाधि
क्यों लेनी पड़ीं ?
अपने देश में कई
शादियाँ देखी है विशाल पंडाल उनमें अनगिनत तरह के पकवान सबका स्वाद भी नहीं लिया
जा सकता विवाह भी ऐसा लगता है खूबसूरत फिल्म चल रही हैं यह ब्लैक मनी का भोंडा
प्रदर्शन है .आज लोग समझ गये हैं अपनी बेटी को अच्छी शिक्षा देते हैं जब वह पैरों
पर मजबूती से खड़ी हो जाती है तब उसकी शादी करते हैं अब तलाकशुदा बेटी पर कोई
प्रश्न नहीं उठाता .यदि उठाता है उसको धिक्कार की नजर से देखा जाता है .