***** कुछ कुछ - किस्त तीसरी *****
*** व्याकरण - भाषा की, जीवन की ***
** मैं और हम **
सभी जानते हैं कि भाषा की व्याकरण होती है।
और जीवन की भी अपनी व्याकरण होती है।
हम जानते हैं कि भाषा बनी है जीवन के लिए। तो जीवन की व्याकरण को प्रथम रखते हुए ही, भाषा-व्याकरण का ध्यान रखना है, करना है।
कहीं कहीं कुछ व्यक्ति अधिकतर ' हम ' शब्द का उपयोग करते हैं। इसको उदहारण से समझते हैं।
शायद सभी सम्मिलित हैं, निश्चित नहीं है कि केवल एक के लिए है या सभी के लिए।
यहां स्थिति अनिश्चित है, इसी तरह की अनिश्चित स्थिति होने पर, हमको ही उसमें स्पष्टता लान होती है, तो ऐसे में वो व्यक्ति
' हम ' सर्वनाम को काम में लाते हैं, ' तुम ' या ' मैं ' सर्वनाम को नहीं। जैसे -
" आज हम कहां जा रहे हैं ? "
वह नहीं कहता है कि
" तुम कहां जा रहे हो ? "
जब वह जानता है और पूरा पूरा निश्चित होता है कि वह केवल अकेले स्वयं को लेकर चल रहा है, सिर्फ तभी ' मैं ' सर्वनाम काम में लाता है।
' मैं ' बोलने से ' मेरे ', और ' मुझे ' भी बोलना शुरू हो जाता है।
और ' हम ' शब्द काम में लाने से ' हमारे ' और ' हमें ' होता रहता है। और हम सब आपस में जुड़े रहते हैं आपस में जुड़े रहने का भाव बना रहता है।
जो व्यक्ति इस तरह से ' हम ', ' हमारे ' और ' हमें ' शब्द काम में लाते हैं। वो इन शब्दों को इस तरह से काम में लाते रहें, मेरा यह निवेदन है।
हम सामाजिक प्राणी हैं, हमको मिल जुल कर रहना ही शोभा देता है;
जो भी उपाय सामाजिकता का साथ दें;
सामाजिकता का सम्मान करें;
वही उपाय हमको काम में लाना शोभा देता है।
उदय पूना
92847 37432;
विशेष:
विद्वान कहां तक सहमत या असहमत हैं, कृपया अवश्य बतलायें।
उदय पूना