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ज्ञान की ओर - ( मनन - 2 )

18 दिसम्बर 2018

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** ज्ञान की ओर - ( मनन - 2 ) **


हम ज्ञान की ओर तभी बढ़ेंगे;

जब हमें जानने की इच्छा हो;

उत्सुकता हो;

हमारे स्वयं के निज ज्ञान में क्या है या क्या नहीं है कि स्पष्टता हो;

हमारे स्वयं के निज अनुभव में क्या आया है या क्या नहीं आया है कि स्पष्टता हो।


एक उदाहरण लेलें, तो बात और साफ हो सकती है।

बचपन से छोटा बच्चा सुनता आया है; बचपन से छोटे बच्चे को बतलाया जाता रहा है;

कि ये तुम्हारी माता हैं;

ये तुम्हारे पिता हैं; आदि, आदि।


जब बच्चा बड़ा हो जाता है तब उसे स्पष्ट होना चाहिए कि मैं निज के बोध से नहीं जानता हूं कि मेरे माता पिता कौन हैं।


जो भी मेरे ज्ञान में नहीं है, अनुभव में नहीं है, उसके संबंध में किसी प्रकार का मत, किसी प्रकार की राय न बनाना ही उचित है, क्योंकि "अभी मुझे पता नहीं है"। जब मैं इस प्रकार से चलता हूं तभी मुझे सच पता चल सकता है, तभी मेरा निज ज्ञान बढ़ सकता है।


मेरा लेखन, मेरी रचना प्रस्तुत है।

शीर्षक है " ज्ञान की ओर "; प्रस्तुत है इसका कुछ अंश।


स्वयं जानना और उसके अनुसार जीवन जीना, या बिना जाने केवल मानने, विश्वास कर लेने के साथ जीवन जीते जाना।इस पर थोड़ी सी चर्चा।


उदय पूना



मेरा लेखन, मेरी रचना --

" ज्ञान की ओर "

- ( मनन - 2 ) (कुछ अंश)


प्रश्न यह नहीं है कि भगवान हैं या नहीं।

प्रश्न यह है कि मेरे स्वयं के अनुभव में क्या है।।0।।


अभी, वर्तमान में,
हमारा स्वयं का आधार है,


जो हमने स्वयं के अनुभव से जाना,
जो हमने स्वयं के ज्ञान से जाना


शेष सब कुछ है,


हमारा स्वयं का विश्वास,
हमारी स्वयं की मान्यता,
हमारी स्वयं की कल्पना।।1।।

इस विश्वास, मान्यता, और कल्पना को हमने स्वयं बनाया;
यह सब है हमारे स्वयं के द्वारा कल्पना किया हुआ


इन में से कुछ कुछ को हम विश्वास कहते हैं, कुछ कुछ को मान्यता,
और कुछ कुछ को लेकर चल रहे हैं कल्पना के रूप में ही;
पर यह स्पष्ट है कि यह सब हमने स्वयं बनाया है स्वयं केलिए।


तो फिर;


यह हमारे लिए उपयोगी होना चाहिए,
इससे हमें लाभ होना चाहिए,
इसे बंधन घटाने वाला होना चाहिए,
इसे मुक्ति दिलाने वाला होना चाहिए,
सुविधा बढ़ना चाहिए,
जीवन में सुलझन बढ़ना चाहिए।।2।।

तो फिर हम परिवर्तन करें;


यदि इससे जीवन में उलझन बढ़ रही हो,
हानी हो रही हो,
हमारे अंदर भय बढ़ रहा हो,
बंधन बढ़ रहा हो।।3।।

हमारा भला होगा,


यदि हम स्वयं की सच्चाई,असलियत के साथ जीवन जियें;
तभी हमारा ज्ञान बढ़ेगा, जीवन में वास्तविकता अनुभव में आयेगी;
तभी हमारे बंधन कटेंगे, हम उन्नत होंगे, हम मुक्ति की ओर बढ़ेंगे।।4।।

हो, हो, हो, ...
जीवन का एक आवश्यक सूत्र है - "
मैं नहीं जानता अभी";

यह जीवन में ज्ञान की ओर बढ़ने केलिए का एक अनिवार्य सूत्र है।


जिस विषय के सम्बन्ध में हमारा स्वयं का अनुभव नहीं है,
जिसे हमने नही जाना;
तो, हम कहेंगे, हो,हो, हो, "
मैं नहीं जानता अभी "।

इस सूत्र के साथ जियेंगे तो जान जाएंगे कभी,
वरना, अन्धकार में रहेंगे, न जानेंगे कभी।


इस सूत्र के साथ जीवन जियें,
प्रश्न करें, संशय करें, चिंतन करें, मंथन करें, स्वयं के स्तर पर।
तो, जीवन में सच्चाई, वास्तविकता बढ़ेगी;
मार्ग मिलते जायेंगे, राह खुलती जायेगी।
तभी हमारे बंधन कटेंगे, हम उन्नत होंगे, हम मुक्ति की ओर बढ़ेंगे।।5।।

हम बंधन मुक्त हों, उन्नत हों, हमें मुक्ति मिले।
इसी मंगल कामना के साथ मुझे विराम मिले।।


----- उदय पूना

9284737432 ,



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उदय पूना

उदय पूना

इस रचना को शब्दनगरी गण ने सम्मानित किया, साधुवाद, प्रणाम, सभी में ज्ञान बढ़े,

19 दिसम्बर 2018

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KabheeKabhee
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