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"हरिया"-एक सच्चाई

21 जनवरी 2019

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"हरिया"-एक सच्चाई

एक बूढ़ी दादी दरवाजे से बाहर आई, और रोते हुए मंगरू से बोली, बेटा तुम्हे लड़का हुआ है ! पर बेटा तोहार मेहरारू बसमतिया इस दुनिया से चल बसी, अब इस अभागे का जो है सो तुम्ही हो ! बेचारी इतने सालों से एक औलाद के लिए तरसती रही, इतने सालों बाद भगवान ने उसकी इच्छा पूरी की, तो बेचारी उसकी सकल देखे बिना ही इस दुनिया से चल बसी ! बेचारी बड़ी अभागन थी ये कहकर बूढ़ी दादी रोने लगी ! ये सब सुनके मंगरू को तो जैसे साँप सूंघ गया, बेचारा पागलों की तरह दहाड़े मार के रोने लगा ! और चिल्ला चिल्ला कर ये कह रहा था, हे भगवान तूने ये क्या किया एक दुआ के बदले तूने मेरी पूरी दुनिया छिन्न ली ! अगर मुझे पता होता के तूँ मेरी एक दुआ के बदले,मेरी पूरी दुनिया मुझसे छिन्न लेगा तो मैं कभी भी तुझसे औलाद न माँगता ! इतने सालों से जिस औलाद के लिए मैं तरस रहा, तूने इतने सालों बाद उसे दिया भी तो उसके बदले मुझसे मेरी पूरी दुनिया छिन्न ली ! अब तूँ ही बता मैं क्या करूँ ? मेरी बसमतिया मुझे छोड़कर चली गई ये कह कर चिल्ला चिल्ला कर रोने लगा !

बीना दूसरी शादी किए ही मंगरू बच्चे को पालने लगा, दिन बीतते गये, मंगरू ने बड़ी मेहनत की उस साल खेतो मे अच्छे- ख़ासे फसल हुए, कुछ अनाज अपने लिए रख कर उसने सारे अनाज बेच दिए, उस पैसे से उसने दो जोड़ी बैल खरीद लिए, अपने खेत की बुआई-जुताई करने बाद, दूसरों के खेत भी जोते और बोये, मिले पैसों मे से आधा तो वो बैलों पे खर्च कर देता, ताकि उनकी सेहत बनी रहे, तभी तो वो ज़्यादा से ज़्यादा खेत जुटाई कर पाएँगे, और आधा पैसा बचा के रखता,खाने की कमी तो थी नही, घर मे अनाज भरा पड़ा था,
दिन बीतते गये दूसरे साल भी अच्छी फसल हुई, अपने लिए कुछ अनाज रख कर उसने सारे अनाज बेंच दिए, मन्गरु बड़ा खुश था, काफ़ी पैसे उसने जमा कर लिए थे ! सोचता काश ये अच्छे दिन देखने के लिए मेरी बासमतिया जिंदा होती, फिर मन ही मन कहता चलो जो हुआ सो हुआ,जो नही है उसके याद मे रोने से क्या फ़ायदा,
मंगरू के दिल मे अपने बेटे "हरिया" के लिए काफ़ी अरमान थे, गाव वालों से कहता मैं तो अनपद-गवार रह गया, लेकिन अपने बेटे "हरिया" को मैं एक काबिल इंसान बनाउँगा पढ़ा लिखा कर ! खूब पढ़ाउँगा मैं उसे, जो ग़रीबी के दिन मैने देख हैं वो नही देखेगा,
लेकिन मंगरू के अरमान तब टूट गये जब "हरिया" 6 साल का हुआ, क्योंकि वो और बचों की तरह नही था, वो नाही किसी बच्चे के साथ खेलता ना किसी से बात करता, बस चुपचाप गुमसूम सा रहता, ना खुद ख़ाता ना नाहाता सारा कुछ मंगरू को ही करना पड़ता, बस यही दुख मंगरू को खाए जा रही था ! के मेरे बाद इसका क्या होगा, मैं कब तक जिंदा रहूँगा और इसकी देख भाल करता रहूँगा ! कितने अरमान सजाए थे, मैने इसके लिए ! कभी खुद को कोसता तो कभी भगवान को बुरा भला कहता,
हे भगवान ये तूने क्या किया, इतने सालों बाद तूने एक औलाद दी,उसके बदले मेरी पत्नी मुझसे छिन्न ली, इसके बाद भी मैंने दिल पे पत्थर रख लिया, ये सोचकर के तूने औलाद तो दी, लेकिन किस काम की ऐसी औलाद, इससे अच्छा था के तू मुझे निवंश ही रखता, अरे मैं कब तक जीता रहूँगा इसकी देख भाल के लिए, मेरे मरने के बाद क्या होगा इसका कौन इसकी देख भाल करेगा, बस यही चिंता मंगरू को खाए जा रही थी, नाही खेती मे उसका मन लगता, ना किसी काम मे!

दिन बीतते गये, मंगरू जब उन्ह बच्चों को देखता जो हरिया से उम्र मे छोटे थे, और विद्यालय मे पढ़ने जाया करते थे ! ये देख हरिया और टूट जाता और मन ही मन कहता काश मेरा हरिया भी इनकी तरह होता, तो कितना अच्छा होता, हे भगवान तूने मेरे ही साथ ऐसा क्यों किया ! और फिर खुद को कोसता और भगवान को बुरा भला कहता !
हरिया अब 14 साल का हो गया था ! लेकिन सिर्फ़ उम्र से, बाकी दिमाग़ से वो ५-६ साल का बच्चा ही था, एक दिन अचानक मंगरू की तबीयत खराब हुई, और वो भी हरिया को इस दुनिया मे अकेला छोड़ चल बसा,
हरिया को इतनी समझ तो थी नहीं वो क्या करता, पड़ोसियों ने जैसे-तैसे इंतेजाम कर लाश को श्मशान ले जाकर जलाया ! मरने के बाद जो बिधि होती है वो चलता रहा, ९वें दिन एक पड़ोसी हरिया को लेकर पंडित जी के पास गया, और बोला पंडित जी कल दसवाँ है (जिस दिन पिंड दान होता है) उ दान का समान लिख देते का-का दान होता है !
फिर क्या था, पंडित जी ने लंबा से सामग्रियों का चिट्ठा पकड़ा दिया उन्हे ! और कहा के ईमा जवन-जवन लिखा है उ सब लाना तभी मन्गरुवा के आत्मा को शांति मिलेगा नहीं तो उसकी आत्मा भटकती रहेगी !
पैसे तो थे नहीं अब इसलिए पड़ोसी हरिया को लेकर लाला के पास गया, और जो थोड़ा बहुत खेत था लाला के पास गिरवी रख के पैसे लाया ! दान का सारा समान खरीद लाए जो भी अक्कड़म-बक्कड़म पंडित जी ने लिखा था !
पंडित जी ने आते ही पूछा, हाँ भाई सारा समान लाए हो न दान वाला जवन-जवन मैने लिखा था ! हाँ पंडित जी हम उ सब समान लाया हूँ, जवन-जवन आप लिखे रहें, पड़ोसी ने कहा ! पंडित जी बैठ गये पूजा पर, बैठते ही अरे उ दूब (एक प्रकार की घास,जिसे कुश भी कहते हैं पिंड दान के लिए अति-उत्तम आवश्यकता होती है उसकी) नही लाए क्या ! तभी पड़ोसी ने हरिया से कहा के, जा खेत से दूब लेके आ ! और हाँ देखना साफ-सुथरा हो गंदा-वन्दा न हो.....
हरिया चला गया खेत मे दूब लाने, उसने एक गठर डूब काट लिए, खेत से दूब लेकर आ रहा था ! तभी उसे रास्ते मे एक गढ़े मे मरी हुई गाय दिखी जो किसी ने फेंक रखी थी, अब हरिया ठहेरा मन्द-बुद्धी, सोचा गाय बड़ी कमजोर हो गई है, शायद इसने कुछ खाया नही होगा ! घास का गठर उसके सामने रख वहीं बैठ गया !
उधर पंडित जी गुस्से से आग बबुला हो रहे थें, गलियाँ दिए जा रहे थें ! न जाने कहाँ जाके मर गया ससुरा, अबे तूँ क्या खड़ा-खड़ा मेरा मुँह देख रहा है, जाके देख कहाँ मार गया वो ! गरजते हुए पंडित जी ने पड़ोसी को बोला.......
पड़ोसी भागता हुआ खेतों की तरफ निकल पड़ा, देखा के हरिया एक गढ़े मे मरी हुई गाय के पास, घास का गठर रख के बैठा हुआ है !
तूँ यहाँ क्या कर रहा है रे हरिया बैठ के, उधर पंडित जी कब से बैठे हैं, चल जल्दी दूब लेके ! दूब और हरिया को लेकर पड़ोसी पंडित जी के पास आया, पंडित जी हरिया को देखते ही, इतना देर से का कर रहा था रे हरामखोर कहाँ मर रहा था अब तक ! उ पंडित जी गैया को घास खिला रहा था, हरिया ने कहा ! क्या..... हम इहा पूजा पे बैठा तुम्हरा इंतजार कर रहा हूँ और तुम उँहा गाय को घास खिला रहे हो...... तभी पड़ोसी ने कहा" उ भी मरी हुई गाय को पंडित जी.....अब तो पंडित जी का पारा और गरम हो गया ! क्या........... अरे हरामखोर मरी हुई गाय कभी घास खाती है रे.......जो तूँ उका खिला रहा था !
पंडित जी के मुँह से निकला ये शब्द न जाने कैसे हरिया के दिमाग़ की बत्ती जला दी........
तभी हरिया ने चिल्ला कर के पंडित जी से कहा, जब मरल (मरी हुई) गैया घास नाही खाए सकत, फिर हमर मरल बाबू ई सब दान का समान कईसे ले जायेगा !
जैसे ही पंडित जी ने हरिया के मुँह से ये शब्द सुना, उनके पैरों तले ज़मीन खिसकने लगी ! फिर क्या था, पंडित जी ने गाव वालों से कहा अरे ई मूर्ख का बकवास किए जा रहा है, और तुम लोग खड़े-खड़े सुन रहे हो ! अरे ई पागल को मार के भागाओ इसे यहाँ से वरना अनर्थ हो जाएगा.....अरे ई तो पागल है तुम लोग तो सही हो मार के भागाओ इसे गाँव से !
फिर क्या था गाँव वालों ने पंडित जी की बात सुनी नहीं के हरिया को गाँव से मार-मार के बाहर निकल दिया ! ये कह के, तूँ पागल हो गया है......अगर तूँ गाँव मे रहा तो गाँव का सत्यानाश हो जाएगा.....................!!

आज भी न जाने कितने हरिया गाँव से निकाल दिए जाते हैं, या फिर उनकी आवाज़ दफ़न कर दी जाती है ! जब भी खोखले रिवाज़ों के प्रति आवाज़ उठाते हैं...........................

मरे हुए की आत्म्शान्ति के लिए सर्वोत्तम दान बस पिंड दान ही है...........
और बाकी के दान तो अपनी इच्छानुसार है.......!!

लेखक- इंदर भोले नाथ…


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कहीं डूबा है कोई यादों मे…

23 जून 2016
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कहीं जख्म है नासूर बनें,कहीं समंदर बसा है आँखों मे,कहीं तन्हा हुआ सा है कोई,कहीं सुलग रहा कोई रातों मे…कुछ इस क़दर बेताब हुए, दीवानें राह-ए-उल्फ़त मे,कहीं जीना कोई भूल बैठा, तो कहीं डूबा है कोई यादों मे……इंदर भोले नाथ…http://merealfaazinder.blogspot.in/

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वो बूढ़ी औरत...

24 जून 2016
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रोज सुबह ड्यूटी पे जाना रोज शाम लौट के रूम पे आना,ये रूटीन सा बन गया था, मोहन के लिये ! हालाँकि रूम से फैक्ट्री ज़्यादा दूर नहीं था, तकरीबन१०-१५ मिनट का रास्ता है ! मोहन उत्तर प्रदेश का रहने वाला है,करीब २ सालों से यहाँ (नोएडा) मे एक प्राइवेट फैक्ट्री मे काम कर रहा है ! रोज सुबह ड्यूटी पे जाना,शाम क

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हमें रुलाना नहीं भूली...

25 जून 2016
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अरसा गुजर गये हमेंमुस्कराना भूले हुएहै ज़िंदगी अजीब तूँहमें रुलाना नहीं भूली…इंदर भोले नाथ…http://merealfaazinder.blogspot.in/

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मेरे लाल

30 जून 2016
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फूलों पे बैठेभौंरे गुनगुनानेलगे हैं..तितलियों केपंख भी अबलहराने लगे हैं..देखो वक़्तकितना निकलचुका है..उठो मेरे लालदिन निकलचुका है..देखो ठंडी हवाभी खिड़कियोंसे आने लगी है….गुदगुदा के वोभी तुम्हे उठानेलगी है…देखो तो सबकुछ कितनाबदल चुका है..उठो मेरे लालदिन निकलचुका है..हर जगहकितनी रौनकहै आ गई…..आसमान स

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“सिगरेट……( Cigarette)

30 जून 2016
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सारी रात मैं सुलगता रहा,वो मेरे साथ जलता रहामैं सुलग-सुलग केघुटता रहा,वो जल-जलके, ऐश-ट्रे मे गिरता रहा,गमों से तड़प के मैंहर बार सुलगता रहान जाने वो किस गममे हर बार जलता रहामैं अपनी सुलगन कोउसकी धुएँ मे उछालतारहा, वो हर बार अपनीजलन को ऐश-ट्रेमे डालता रहा,घंटों तलक ये सिलसिलाबस यूँ ही चलता रहामैं हर

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हैं वो ना-समझ “भगवन”

30 जून 2016
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हैं वो ना-समझ “भगवन”जो तुझे पैसों से रिझावे हैं,दुआ करोड़ों की माँगे,चन्द सिक्के चढ़ावे हैं…जिसे ज़रूरत है रोटी की,उसे पानी न पिलावे हैं,जो बना है पत्थरों का, उसे मेवा खिलावे हैं…... इंदर भोले नाथ…

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ख़ौफज़दा दिल…

30 जून 2016
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बड़ा ही ख़ौफज़दा है दिल,इन फरेबी हुक्मरानों से,हयात-ए-आबरू लूटते देखा,अपने ही पासबानों से……इंदर भोले नाथ…ख़ौफज़दा-डरा हुआफरेबी- झूठाहुक्मरानों- नियम बनाने वालेहयात- जीवनआबरू- मर्यादापासबानों- रक्षक-चौकीदार

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वही अपने सारे हैं......!!

2 जुलाई 2016
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चाँद भी वही तारे भी वही..!वही आसमाँ के नज़ारे हैं...!!बस नही तो वो "ज़िंदगी"..!जो "बचपन" मे जिया करते थे...!!वही सडकें वही गलियाँ..!वही मकान सारे हैं.......!!खेत वही खलिहान वही..!बागीचों के वही नज़ारे हैं...!!बस नही तो वो "ज़िंदगी"..!जो "बचपन" मे जिया करते थे...!!... इंदर भोले नाथ…

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"हरिया"

2 जुलाई 2016
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"हरिया"एक बूढ़ी दादी दरवाजे से बाहर आई, और रोते हुए मंगरू से बोली, बेटा तुम्हे लड़का हुआ है ! पर बेटा तोहार मेहरारू बसमतिया इस दुनिया से चल बसी, अब इस अभागे का जो है सो तुम्ही हो ! बेचारी इतने सालों से एक औलाद के लिए तरसती रही, इतने सालों बाद भगवान ने उसकी इच्छा पूरी की, तो बेचारी उसकी सकल देखे बिना

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जिसका नाम हिन्दुस्तान है…

11 जनवरी 2019
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हर तरफ है, मचा कोहराम,है बिखरा, टुकड़ों मे आवाम,है कहीं,नेताओं की मनमानी,सत्ता को समझे पुस्तानी…जिसे चुना, खुद को बचाने को,है वो तैयार, हमें मिटाने को…लड़ता रहा,जो सत्य के लिए,उसका कोई ज़िक्र नहीं…खुदा ढूंढते

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वही अपने सारे हैं......!!

17 जनवरी 2019
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चाँद भी वही तारे भी वही..!वही आसमाँ के नज़ारे हैं...!!बस नही तो वो "ज़िंदगी"..!जो "बचपन" मे जिया करते थे...!!वही सडकें वही गलियाँ..!वही मकान सारे हैं.......!!खेत वही खलिहान वही..!बागीचों के वही नज़ारे हैं...!!बस नही तो वो "ज़िंदगी"..!जो "बचपन" मे जिया करते थे...!!#मेरे_अल

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हे कान्हा....

17 जनवरी 2019
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हे कान्हा...अश्रु तरस रहें, निस दिन आँखों से बरस रहें,कब से आस लगाए बैठे हैं, एक दरश दिखाने आ जाते...बरसों से प्यासी नैनों की, प्यास बुझाने आ जाते...बृंदावन की गलियों मे, फिर रास रचाने आ जाते...राधा को दिल मे रख कर के, गोपियों संग रास रचा जाते...कहे दुखियारी मीरा तोह से,

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"9:45 की लोकल"

17 जनवरी 2019
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ऑटो स्टैंड से दौड़ता हुआ , मैं जैसे ही रेलवे स्टेशन पहुँचा, पता चला 9:45 की लोकल जा चुकी है !मेरे घर से तकरीबन 9 .कि.मि. दूर पर है रेलवे स्टेशन, छोटा सा स्टेशन है,लोकल ट्रेन के अलावा 1-2 एक्शप्रेस ट्रेन की भी स्टोपीज़ है, मैं स्टेशन मास्टर के पास गया और पूछा सर बनारस के लिए कोई ट्रेन है ! स्ट

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"9:45 की लोकल"

17 जनवरी 2019
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ऑटो स्टैंड से दौड़ता हुआ , मैं जैसे ही रेलवे स्टेशन पहुँचा, पता चला 9:45 की लोकल जा चुकी है !मेरे घर से तकरीबन 9 .कि.मि. दूर पर है रेलवे स्टेशन, छोटा सा स्टेशन है,लोकल ट्रेन के अलावा 1-2 एक्शप्रेस ट्रेन की भी स्टोपीज़ है, मैं स्टेशन मास्टर के पास गया और पूछा सर बनारस के लिए कोई ट्रेन है ! स्टेशन मास

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"सिगरेट......( Cigarette)

17 जनवरी 2019
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सारी रात मैं सुलगता रहा,वो मेरे साथ जलता रहामैं सुलग-सुलग के घुटता रहा,वो जल-जलके, ऐश-ट्रे मे गिरता रहा,गमों से तड़प के मैंहर बार सुलगता रहान जाने वो किस गममे हर बार जलता रहामैं अपनी सुलगन कोउसकी धुएँ मे उछालतारहा, वो हर बार अपनीजलन को ऐश-ट्रेमे डालता रहा,घंटों तलक ये सिलसि

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वो बूढ़ी औरत…..

18 जनवरी 2019
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रोज सुबह ड्यूटी पे जाना रोज शाम लौट के रूम पे आना,ये रूटीन सा बन गया था, मोहन के लिये ! हालाँकि रूम से फैक्ट्री ज़्यादा दूर नहीं था, तकरीबन१०-१५ मिनट का रास्ता है ! मोहन उत्तर प्रदेश का रहने वाला है,करीब २ सालों से यहाँ (नोएडा) मे एक प्राइवेट फैक्ट्री मे काम कर रहा है ! र

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बता ऐ-दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है...

18 जनवरी 2019
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क्यूँ उदास हुआ खुद से है तूँ कहीं भटका हुआ सा है,न जाने किन ख्यालों मे हर-पल उलझा हूआ सा है,बता ऐ-दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या हैखोया-खोया सा रहता है अपनी ही दुनिया मे,गुज़री हुई यादों मे वहीं ठहरा हुआ सा है,बता ऐ-दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या हैशीशा-ए-ख्वाब तो टूटा नहीं तेरे हा

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वो-प्यार याद आया...

18 जनवरी 2019
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गुजरें जो गली से उसके,वो-दीदार याद आया पलते नफ़रतों के दरमियाँ,वो-प्यार याद आया आँखों से मिलने का वो इशारा करना उसका फिर करना तन्हा मेरा,वो इंतेजार याद आया शिकवे लिये लबों पे,बेचैन वो होना मेरा फिर चुपके से लिपट के उसका,वो इज़हार याद आया मिल के उससे दिल का,वो फूल सा खिल जा

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बसंत का मौसम

18 जनवरी 2019
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है महका हुआ गुलाब खिला हुआ कंवल है,हर दिल मे है उमंगेहर लब पे ग़ज़ल है,ठंडी-शीतल बहे ब्यार मौसम गया बदल है,हर डाल ओढ़ा नई चादर हर कली गई मचल है,प्रकृति भी हर्षित हुआ जो हुआ बसंत का आगमन है,चूजों ने भरी उड़ान जो गये पर नये निकल है,है हर गाँव

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“अब भी आता है”

18 जनवरी 2019
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ज़रा टूटा हुआ है,मगर बिखरा नहीं है ये,वफ़ा निभाने का हुनर इस दिल को अब भी आता है…तूँ भूल जाए हमे ये मुमकिन है लेकिन,हर शाम मेरे लब पे तेरा ज़िक्र अब भी आता है…हज़ारों फूल सजे होंगे महफ़िल मे तेरे लेकिन,मेरे किताबों मे सूखे उस गुलाब से खुश्बू

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भूख की आग…………

18 जनवरी 2019
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बहुत पहले की बात है किसी राज्य मे एक राजा रहता था ! राजा बहुत ही बहादुर,पराकर्मी होने के साथ-साथ घमंडी और दुष्ट प्रवृति का भी था ! उसने बहुत से राजाओं को हराकर उनके राज्य पर कब्जा कर लिया ! उसके बहादुरी और दुष्टता के किस्से दूर-दूर तक फैला हुआ था ! वो किसी भी साधु-महात्मा

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आँखों को जो उसका दीदार हो जाए

18 जनवरी 2019
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आँखों को जो उसका दीदार हो जाएमेरा सफ़र भी मुकम्मल यार हो जाएमैं भी हज़ारों ग़ज़ल लिखता उसपेकाश..हमें भी किसी से प्यार हो जाए==========================……......इंदर भोले नाथ…...……...

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ढूंढता फिर रहा खुद को...

18 जनवरी 2019
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कहीं गुम-सा हो गया हूँ मैं क़िस्सों और अफ़सानों मे…ढूंढता फिर रहा खुद को महफ़िलों और वीरानों मे…कभी डूबा रहा गम मे कभी खुशियों का मेला है…सफ़र है काफिलों के संग पाया खुद को अकेला है…प्यालों मे ढलते,देखा कभी कभी मीला मयखानों मे…..ढूंढता फिर रहा खुद को महफ़िलों और वीरानों म

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चूहों ने जब हिम्मत बनाई ,

18 जनवरी 2019
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चूहों ने जब हिम्मत बनाई ,बिल्ली को मार भगाने की…तब बिल्ली ने ढोंग रचाई,की तैयारी हज को जाने की…———————————-Acct- इंदर भोले नाथ…२१/०१/२०१६….

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खेदारु…. एक छोटी सी कहानी….

18 जनवरी 2019
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गंगा नदी के तट से कुछ दूर पे एक छोटा सा गाँव (चांदपुर) बसा है ! जो उत्तर प्रदेश के बलिया जिले मे स्थिति है,उस गाँव मे (स्वामी खपड़िया बाबा ) नाम का एक आश्रम है, जहाँ बहुत से साधु-महात्मा रहते हैं !उन दिनों गर्मियों का मौसम था, एक महात्मा आए हुए थें ! जिनका नाम स्वामी हरिह

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जब हम बिखर गयें…

18 जनवरी 2019
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बिखरे हुए ल्फ्ज़,अल्फाज़ों मे निखर गयें,निखरे मेरे-अल्फ़ाज़,जब हम बिखर गयें…——————————————————–Acct-इंदर भोले नाथ…08/02/2016

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पर अब है,इतना वक़्त कहाँ...

18 जनवरी 2019
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पर अब है,इतना वक़्त कहाँ...फिर लौट चलूं मैं,”बचपन” मे,पर अब है,इतना वक़्त कहाँ…खेलूँ फिर से,उस “आँगन” मे,पर अब है,इतना वक़्त कहाँ…क्या दिन थें वो,ख्वाबों जैसे,क्या ठाट थें वो,नवाबों जैसे…फिर लौट चलूं,उस “भोलेपन” मे,पर अब है,इतना वक़्त कहाँ…

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कुछ तो बहेका होगा,

18 जनवरी 2019
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कुछ तो बहेका होगा,रब भी तुझे बनाने मे…सौ मरतबा टूटा होगा,ख्वाहिशों को दबाने मे…!!आँखों मे है नशीलापन,लगे प्याले-ज़ाम हो जैसे…गालों पे है रंगत छाई,जुल्फ घनेरी शाम हो जैसे…सूरज से मिली हो लाली,शायद,लबों को सजाने मे…कुछ तो बहेका होगा,रब भी तुझे बनाने मे…!!मलिका हुस्न की हो या,हो कोई अप्सरा तुम…जो भी हो

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लम्हा तो चुरा लूँ…

18 जनवरी 2019
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उन गुज़रे हुए पलों से,इक लम्हा तो चुरा लूँ…इन खामोश निगाहों मे,कुछ सपने तो सज़ा लूँ…अरसा गुजर गये हैं,लबों को मुस्काराए हुए…सालों बीत गये “.ज़िंदगी”,तेरा दीदार किये हुए…खो गया है जो बचपन,उसे पास तो बुला लूँ…उन गुज़रे हुए पलों से,इक लम्हा तो चुरा लूँ…जी रहे हैं,हम मगर,जिंदगी

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बरसों बाद लौटें हम...

18 जनवरी 2019
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बरसों बाद लौटें हम,जब उस,खंडहर से बिराने मे…जहाँ मीली थी बेसुमार,खुशियाँ,हमें किसी जमाने मे…कभी रौनके छाई थी जहाँ,आज वो बदल सा गया है…जो कभी खिला-खिला सा था,आज वो ढल सा गया है…लगे बरसों से किसी के,आने का उसे इंतेजार हो…न जाने कब से वो किसी,से मिलने को बेकरार हो…अकेला सा प

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वो पहला खत मेरा "तेरे नाम का"..........

18 जनवरी 2019
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वो पहला खत मेरा "तेरे नाम का"..........वो पहला खत मेरा “तेरे नाम का”……….मेरी प्यारी (******)हर वक़्त हमें तेरी मौजूदगी का एहसास क्यूँ है,जब याद करता दिल तुझे, तूँ पास क्यूँ है…ये क्या है क्यूँ है,कुछ समझ नहीं आता,तेरे न होने से आज दिल उदास क्यूँ है…कल तेरे न आने से,मैं सा

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कुछ पल और रुक ए -ज़िंदगी

18 जनवरी 2019
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यादों के पन्ने से…..

18 जनवरी 2019
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यादों के पन्ने से…..हर शाम….नई सुबह का इंतेजारहर सुबह….वो ममता का दुलारना ख्वाहिश,ना आरज़ूना किसी आस पेज़िंदगी गुजरती थी…हर बात….पे वो जिद्द अपनीमिलने की….वो उम्मीद अपनीथा वक़्त हमारी मुठ्ठी मेमर्ज़ी के बादशाह थे हमथें लड़ते भी,थें रूठते भीफिर भी बे-गुनाह थें हमवो सादगी क

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वो यादें..................

20 जनवरी 2019
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कागज़ की कश्ती बनाके समंदर में उतारा था हमने भी कभी ज़िंदगी बादशाहों सा गुजारा था,बर्तन में पानी रख के ,बैठ घंटों उसे निहारा था फ़लक के चाँद को जब

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"वो रिक्शा वाला"

21 जनवरी 2019
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"वो रिक्शा वाला" "साहेब मुझे छोड़ दो साहेब" "साहेब मुझे छोड़ दो साहेब" बार-बार यही फरियाद करता रहा, वो रिक्शा वाला थानेदार "साहेब" से........... "साहेब मुझे छोड़ दो साहेब" मैं बहुत ही ग़रीब आदमी हूँ "साहेब" माँ-बाप ने जैसे-तैसे क़र्ज़ लेकर

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"हरिया"-एक सच्चाई

21 जनवरी 2019
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"हरिया"-एक सच्चाई एक बूढ़ी दादी दरवाजे से बाहर आई, और रोते हुए मंगरू से बोली, बेटा तुम्हे लड़का हुआ है ! पर बेटा तोहार मेहरारू बसमतिया इस दुनिया से चल बसी, अब इस अभागे का जो है सो तुम्ही हो ! बेचारी इतने सालों से एक औलाद के लिए तरसती रही, इतने सालों बाद भगवान ने उसकी इच्छ

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मेरी शायरी

27 जनवरी 2019
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मैं बह गया क़तरा क़तरा, मैं टुटा जा़र जा़र सा, ये मेरी वफ़ा का ईनाम है, तेरी बेवफाई वजह नहीं...

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देश के खास मंदिर

30 जनवरी 2019
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करणी माता मंदिर इस मंदिर को चूहों वाली माता का मंदिर, चूहों वाला मंदिर और मूषक मंदिर भी कहा जाता है, जो राजस्थान के बीकानेर से 30 किलोमीटर दूर देशनोक शहर में स्थित है। करनी माता इस मंदिर की अधिष्ठात्री देवी हैं, जिनकी छत्रछाया में चूहों का साम्राज्य स्थापित है। इन चूहों में

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गज़ल

7 फरवरी 2019
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जीन्हे भुलने में है.....हमने उम्र गुजारी काश़ हम उन्हें दो वक्त याद आये तो होतें बहाया अश्कों का सागर यादों में जिनके काश़ वो आंसुओं के दो बूंद बहाये तो होतें जीन्हे भुलने में है.....हमने उम्र गुजारी काश़ हम उन्हें दो वक्त याद आये तो होतें

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गज़ल

9 फरवरी 2019
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जीना मुश्किल था कभी जिनका हमारे बीनाआज कल उनके लिए हम बेकार हो गये हैं,हमें देख कर कल निगाहें झुका लीगैरों के लिए आज तैयार हो गये हैं,आज कल उनके लिए हम बेकार हो गये हैं,वो वो नहीं रहें अब जो छूई मूई सा लगा थाआशियाने से निकल कर बाजार हो गये हैं,जो सहेम जाते थें रुह तक,देखकर काफिलामहफ़िलों में आज कल व

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दर्द

15 फरवरी 2019
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यह बात तमाचे कि नहीं जो बापू सा अहिंसावाद रहें वो खून की होली खेल रहें और हम निराशावाद रहें उतर के देखो सियासत से कभी उस घर में कितनी मातम है वो दर्द रूह को छलनी कर दे वो जख्म सालों बाद रहे क्यों मौन साधे यूं बैठे हो फिर तांडव का आगाज करो उन्होंने 40 मारे हैं तुम 400 का शिकार करो नदियां बहा दो खून क

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ग़ज़ल

8 जुलाई 2019
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फन्ना हुई कस्ती मेरी,मेरे आसूओं मे डूबकर,कुछ इस क़दर इश्क़ में रुलाया गया हूँ मैं...https://merealfaazinder.blogspot.com/2019/07/blog-post_73.html

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"गुलज़ार गली" Part-1

8 जुलाई 2019
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"गुलज़ार गली" भाग-१ hindi poem"तुम्हे जाना तो खुद पे हमें तरस आ गया,तमाम उम्र यूँही हम खुद को कोसते रहें"............"गुलज़ार गली" यही नाम था उस गली का....मैने कभी देखा नहीं था बस सुना था, हर किसी के ज़ुबान पे बस उसी गली की चर्चा रहती "गुलज़ार गली" |तकरीबन डेढ़ महीन

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शायरी

26 जुलाई 2019
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नई ज़िंदगी मिल जाती है, उस रोज मैखाने में,आब-ए-चश्म छलक जाते हैं जिस रोज पैमाने में........इंदर भोले नाथ

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वो जून कि गर्मी, वो पीपल का साया

3 अगस्त 2019
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वो जून कि गर्मी, वो पीपल का सायावो यारों की टोली, वो रिश्तों का मायावो मिट्टी का घरौंदा, वो खपरैलों का छतलिए सोंधी सी खुश्बू, वो काग़ज़ का ख़त https://merealfaazinder.blogspot.com/2019/08/blog-post_3.html

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