shabd-logo

प्यासा...

20 सितम्बर 2021

29 बार देखा गया 29
मेरी शिकायतों पर कहा उसने "चले जाओ"....
मैं कैसे समझाऊं उस नादान को, कि कोई प्यासा दरिया से दूर आशियाना बनाता है क्या ?

मैं तो बंजर ज़मीं का वो दरख़्त हूँ यहीं फ़ना हो जाएगा, कोई मुसाफिर नहीं जो आज यहां और कल वहां ठहर जाता है....!

Rupesh Pratap Singh की अन्य किताबें

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए