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शिशिर मधुकर के बारे में

विज्ञानं का छात्र होने के बावजूद मेरे लिए हिंदी कविता के माध्यम से मन के उद्गारों को व्यक्त करना सबसे बड़ा सुकून प्रदान करने वाला है. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से वर्ष 1997 में भौतिकी में पी. एच . डी . करने के उपरान्त मैं विगत 18 वर्षों से विज्ञान एवम प्रोद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के अंतर्गत प्रोद्योगिकी सूचना, पूर्वानुमान एवुम मूल्यांकन परिषद (टाईफैक ), नै दिल्ली में वैज्ञानिक अधिकारी के पद पर कार्यरत हूँ .

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शिशिर मधुकर की पुस्तकें

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समय समय पर मेरे मन से निकलने वाले शब्दों को व्यक्त करने का अनुपम मंच.

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समय समय पर मेरे मन से निकलने वाले शब्दों को व्यक्त करने का अनुपम मंच.

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शिशिर मधुकर के लेख

ना कोई अपना हुआ

6 जनवरी 2020
1
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यूं तो दीवाने कई पर ना कोई अपना हुआ सोचते ही रह गए बस पूरा ना सपना हुआ ढूंढते ही रह गए हैं ना खुदा मुझको मिला उम्र गुज़री जाए है बेकार जप जपना हुआ कोई पढता भी नहीं चाहे रहूं मैं सामने बेवजह अखबार में देख लो छपना हुआ अजनबी सा अब वो पेश आ रहा है दोस्तों बेकार ही अपना तो उसके साथ में खपना हुआ सोचते थे

असली लगाव

6 जनवरी 2020
3
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असली लगाव हो तो रस्ते बन ही जाते हैं मिट्टी से मिल मुरझाए पौधे तन ही जाते हैं सब दूर हमसे हो रहे फिर भी ना सोच क्या हम उनको समझ अपना लगाए मन ही जाते है किसको कहां परवाह कि वो दिल में बसाएगा अब तो अच्छे लगे हैं जो लुटाए धन ही जाते हैं सही क्या है गलत क्या है यहां जो भी बताएंगे सयाने स्वार्थी लोगों मे

उलझनों में

6 जनवरी 2020
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त्तुम्हारे पास जीने के सुनो कितने सहारे हैं मैंने तो उलझनों में बिन तेरे लम्हें गुजारे हैंकोई भी दर नहीं ऐसा जहां पे चैन जा मांगूतेरे आगे तब ही तो हाथ ये दोनों पसारे हैंदर्द सहता रहा हूं मैं दवा मिलती नहीं कोईछुपे शायद इसी में जिंदगी के कुछ इशारे हैंभले ही तुम जमाने के लिए सच से मुकर जाओमेरी धड़कन क

फूल का सा मन

4 जनवरी 2020
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तुमको तलाशते रहे तुम ना मिले मुझे हरदम रहेंगे जान लो कुछ तो गिले मुझे सब कुछ लुटा दिया फकत इक बोल पे तेरे मिल जाते काश इसके एवज कुछ तो सिले मुझे इक प्यार तेरा गर यहां मुझको नसीब हो मिट्टी लगेंगे जान लो ये सब किले मुझे है फूल का सा मन मेरा फिर भी उदास हूं मुद्दत हुई है देख लो कितनी खिले मुझे मधुकर ने

तुम भी बदल गए

4 जनवरी 2020
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कैसे दर्द ना हो मुझे तुम भी बदल गए अरमान मेरे कदमों तले सारे कुचल गए यूं तो है भीड़ हर तरफ तुझ सी ना बात है देखा है तुझको जिस घड़ी आशिक मचल गए अब वो कभी ना आएगा मुझसे है कह रहा बिजली गिराओ ना सुनो दिलबर दहल गए अच्छी नहीं ये बात सनम सब कुछ भुला दिया उनकी भी कुछ तो सोच जो करते पहल गए भूलो ना प्यार से

मैं भी देख दीवानी बन गई हूं

4 जुलाई 2019
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ए हमदम मेरे और दीवाने मेरे मैं भी देख दीवानी बन गई हूं मुहब्बत का तेरी ऐसा असर है हरी बेल सी आज मैं तन गई हूं मेरा मोल समझा ना पहले किसी ने मुझको फकत एक नाचीज समझा तूने मोल मेरा है जब से बताया अब तो मैं अनमोल बन धन गई हूं अकेली थी जब तो हिम्मत नहीं थी चारो तरफ नाग लहरा रहे थे जब से मिला है तेरा साथ

झंकार

4 जुलाई 2019
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अगर प्यार होता नहीं मेरे मन में तो कैसे मैं इसका इकरार करती कितना भी चाहे तू मुझको लुभाता इसका ना हरगिज मैं इजहार करती औरत के मन में बसे गर ना कोई उससे वो फिर दूरियां है बनाती फिर भी अगर कोई पीछा करे तो ऊंची मैं छिपने को दीवार करती राहों में तेरी पलके बिछा कर बैठी हूँ कब से तुझे देखने को अगर मेरे दि

जादू

4 जुलाई 2019
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वो जादू है मुहब्बत में जवां जो मन को करता है ना जाने फिर भी क्यों इंसान प्रीति धन को करता है बोल वो प्यार के तेरे समां जाते हैं नस नस में लहू सा बन के फिर ये प्रेम शीतल तन को करता है मुहब्बत की आस पाले नाचते मोर को देखो मोरनी से मिलन को प्यार वो इस घन को करता है मुहब्बत के वार से ही उसने दुनिया हरा

खबर लो

4 जुलाई 2019
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मधुर मिलन की है आस मन में कोशिश जरा तो कर लो मुझको लगाओ सीने से अपने बाहों के बीच भर लो ये जिंदगी है कुछ पल का मेला सोचो ना हद से ज्यादा औरों की सुन के देखो ना हरदम सूनी कोई डगर लो दिल में छुपा के कब तक रखोगे मन जो भी कह रहा है अधरों के बीच तुम भी सनम ए मेरी ही सांस धर लो इंसान हो तो इंसा रहो ना भगव

लफ्ज का मरहम

28 फरवरी 2019
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मन की हर बात करने का मेरा मन तुझसे करता हैतेरे हर लफ्ज का मरहम मेरी पीड़ा को हरता हैमेरी झोली किसी के प्यार से महरूम थी अब तकतू दोनों हाथों से इसको सदा हँस हँस के भरता हैतू मेरे साथ है जब से मुझ को चिंता नहीं रहतीतन्हा इंसान ही बस हर समय गैरों से डरता हैअलग इंसान होते हैं फ़कत कातिल ज़माने मेंये जज्बा

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