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अंकित शुक्ला के बारे में

बस प्रीत मिले

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अंकित शुक्ला की पुस्तकें

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अंकित शुक्ला के लेख

मेरे तीज त्योहार

8 सितम्बर 2021
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<p>सब तीज त्योहार तुमसे हैं,❤️</p> <p>मेरे सारे मान मनुहार तुमसे हैं,💕</p> <p>इस परिवारिक मोतियों क

आज फिर मै माँ का हो जाना चाहता हूँ

8 सितम्बर 2020
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बस इन्ही दिनों में खो जाना चाहता हूँ,आज फिर माँ की गोद में सो जाना चाहता हूँ।कविता, पंक्तियाँ, बतकहियां, ये सब बहानें है, आज इन्ही के सहारे फिर घर आ जाना चाहता हूँ।।----अंकित_अवध©

चलो तुम न लेटो,

9 फरवरी 2018
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चलो तुम न लेटो,चलो तुम न लेटो,आओ हम बैठ एक दूसरे को ताके,बस अनन्त में बसी आंखों में झांके,चलो तुम न लेटो,हम तुम्हारे हाथों की बाह में चिड़िया वाला खेल खेले,तुम्हारी कलाई को पकड़े ओर खुद से मिला के चले,चलो तुम न लेटोचलो तुम न लेटो,आओ मेरे सामने बैठो,अपने बालों को जूड़े से खोलो,हम सहलाये उन्हें,मखमली रेश

मेरी हिंदी माँ

19 सितम्बर 2017
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मेरी हिंदी माँमेरी तो हर सांसे तेरी वजह से है,फिर तेरे नाम एक दिन क्यों माँ,मेरी हिंदी माँ।मेरी तो हर रग रग में तुम ही समायी हो,फिर तुम्हे एक ही दिन क्यों मनाऊ माँ,मेरी हिंदी माँ।मेरे जन्म से मरण तक तुम ही मेरी आत्मा हो,फिर तुम्हारे लिए एक ही दिन क्यों माँमेरी हिंदी माँ।मेरी तो ले

मेरी प्रीतम मुझमे बसी।

28 अगस्त 2017
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मेरी प्रीतम, मुझमे बसी,फिर भी मेरा मन ढूंढे।फिर भी मेरा मन ढूंढे।।मेरी प्रीतम, मेरी कस्तूरी,फिर भी मेरा मृग मन भटके।फिर भी मेरा मृग मन भटके।।मेरी प्रीतम, मेरा वेद पुराण,फिर भी मेरी गुरुवाणी अटके।फिर भी मेरी गुरुवाणी अटके।।मेरी प्रीतम, मेरी अनुसुइया,फिर भी मेरा उदर भूखा।फिर भी मेरा उदर भूखा।।मेरी प्र

वो घर बैठा इंसान क्या जाने।

25 अगस्त 2017
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हम चलते है , हम गिरते है,पर फिर भी आगे बढ़ते है।जो दर्द मिला सफर मेंवो घर बैठा इंसान क्या जाने।हम आते है , हम जाते है,हम सबसे हाथ मिलाते है।जो प्यार इस दुनिया मेंवो घर बैठा इंसान क्या जाने।हम हिंदी बोले, वो कोकण बोले,फिर भी अर्ध रात्रि में मीठे नगमे गाते है।जो अहसास मिला इस जंगल मेंवो घर बैठा इंसान

गोवा घूमने के लिए ठीक पर बसने के लिए बेकार

15 दिसम्बर 2016
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मित्रो नमस्कारगोवा म आप प्रकृति की सुंदरता के लिए आना चाहते है तो बेशक आईये ।। पर यदि यही बस जाने का ख्याल ह तो मेरे विचार ये आपके मन के लिए सुखदायी न होगा।।।। क्योंकि नो स दूर कोई भला कब कहाँ खुश रह पाया है।।। मैं पिछले 3 महीने से यहां हु ।।। पर जो ख़ुशी अपने शहर की मिटटी म थी वो यह के समंदर म न है।

प्रीत

3 अक्टूबर 2015
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अल्फाज के  मोती काम पड़ गए, बातो का  घरोंदा बनाने में अभी तो एक मुलाकात  ही मयस्सर हुई ह आगे क्या होगा इस ज़माने में ..................bus  प्रीत मिले 

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